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२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं वृत्तान्त को आद्योपान्त सुनाया। ऋषभदेव को जन्म देने तथा श्रमणपरम्परा को एक युग प्रवर्तक सौंपने का श्रेय माता मरुदेवी को ही है। मरुदेवी का चरित्र कौत्सुभ मणि के समान शुभ्र और उज्ज्वल था। उन्होंने एक ऐसे पुत्ररत्न को जन्म दिया, जिसके कारण पुत्र के साथ ही उनका नाम भी स्मरणीय बन गया।
श्रीमद् भागवत में मरुदेवी तथा नाभि राजा के पुत्र भगवान् ऋषभदेव वातरशना श्रमणों के धर्म प्रवर्तक कहे गये हैं। उनके सुन्दर शरीर विपुल कीर्ति, तेज, बल, ऐश्वर्य, यश और पराक्रम आदि सद्गुणों के कारण राजा नाभि ने उनका नाम ऋषभ रखा। पुत्र की कई प्रकार की विशुद्ध बाल लीलाओं को देखकर माता अति प्रसन्न होती थीं। समय व्यतीत होने लगा और पुत्र ऋषभ ने यौवन में पदार्पण किया। मातापिता ने पुत्र का विवाह सुमंगला तथा सुनन्दा से किया । __ मरुदेवी उदार हृदया माता थीं। उनका हृदय वात्सल्य और मातृत्व से ओतप्रोत था। वे करुणा की साक्षात् देवी थों, पुत्र-वियोग को सहन नहीं कर सकती थीं। ऋषभदेव के प्रव्रज्या ग्रहण करने के पश्चात् वे उनके दर्शन को उत्कट अभिलाषा से अपने पौत्र भरत से बार-बार अनुनय करतो थीं। भरत के द्वारा तीर्थंकर की दिव्य विभूतियों का चित्र प्रस्तुत करने पर भी मरुदेवी को सन्तोष नहीं हआ, अतः उनके आगमन पर वे भरत के साथ गजारूढ़ होकर दर्शनार्थ चल पड़ीं। ऋषभदेव शांत
१. (क) आचार्य जिनसेन ने मत्स्ययुगल और सिंहासन यह दो स्वप्न बढ़ाकर
सोलह स्वप्न बताये हैं।
(ख) महापुराण पर्व-१२, पृ० १०३ २. त्रिषष्टिशलाका पुरुष च.-पर्व १, सर्ग ४, पृ० १२४-१२५ ३. श्रीमद्भागवत, ५।३।२०
उद, देवेन्द्र मुनि-ऋषभदेव एक परिशीलन-पृ० ६५ श्रीमद्भागवत-५।४।२, प्र० खं० गोरखपुर संस्कृत ३, पृ० ५५५
उद० देवेन्द्र मुनि-ऋषभदेव एक परिशीलन-पृ० ६५-७० ५. भगवती य माता भणति भरहस्स रज्जविभूति दळूणं-मम पुत्तो एवं चैव
णग्गवो हिंडति । ताहे भरहो भगवतो विभूति वन्नेति, सा ण पतियति, ताहे गच्छंतेण भणिता-एहि जा ते भगवतो विभूतिं दरिसेमि, जदि एरिसिया ममं सहस्सभागेणवि अस्थि त्ति, ताहे हत्थिखंधेण णीति ।
-आवश्यक चूणि जिनसेन, पृ० १८१
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