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विभिन्न धर्मों में नारी की स्थिति को तुलना
( १ ) हिन्दू धर्म और जैनधर्म - हिन्दू धर्म में वैदिक युग में नारी की भूमिका धार्मिक और सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी और उसे पुरुष के समकक्ष ही समझा जाता था । स्त्रियों के द्वारा रचित अनेक वेद ऋचाएं और यज्ञ आदि धार्मिक कर्मकाण्डों में पत्नी की अनिवार्यता, निश्चय ही इस तथ्य की पोषक हैं। मनु का यह उद्घोष कि नार्यस्तु यत्र पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता - अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है. वहाँ देवता रमण करते हैं, इसी तथ्य को सूचित करता है कि हिन्दूधर्म में प्राचीनकाल से नारी के महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है, इन सबके अतिरिक्त भी देवी उपासना के रूप में सरस्वती, लक्ष्मी, महाकाली आदि देवियों की उपासना भी इस तथ्य की सूचक है कि नारी न केवल उपासक है अपितु उपास्य भी है। यद्यपि वैदिक युग से लेकर तंत्र युग के प्रारम्भ तक नारी की महत्ता के अनेक प्रमाण हमें हिन्दूधर्म में मिलते हैं किन्तु इसके साथ ही साथ यह भ है कि स्मृति युग से ही उसमें क्रमशः नारी के महत्त्व का अवमूल्यन होता गया। स्मृतियों में नारी को पुरुष के अधीन बनाने का उपक्रम प्रारम्भ हो गया था और उनमें यहाँ तक कहा गया कि नारी को बाल्यकाल में पिता के अधीन, युवावस्था में पति के अधीन और वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रह कर ही अपना जीवन जीना होता है । इस प्रकार वह सदैव ही पुरुष के अधीन ही है, कभी भी स्वतन्त्र नहीं है। स्मृति काल में उसे सम्पत्ति के अधिकार से भी वंचित किया गया और सामाजिक जीवन में मात्र उसके दासी या भोग्या स्वरूप पर ही बल दिया गया। पति की सेवा को ही. उसका एकमात्र कर्तव्य माना गया ।
यह विडम्बना ही थी कि अध्ययन के क्षेत्र में भी वेद ऋचाओं की निर्मात्री नारी को, उन्हीं ऋचाओं के अध्ययन से वंचित कर दिया गया उसके कार्यक्षेत्र को सन्तान उत्पादन, सन्तान - पालन, गृहकार्य सम्पादन तथा पति की सेवा तक सीमित करके उसे घर की चारदिवारी में कैद कर दिया गया । हिन्दू धर्म में नारी की यह दुर्दशा मुस्लिम आक्रान्ताओं के आगमन के साथ क्रमशः बढ़ती हो गयी । रामचरितमानस के रचयिता युगकवि तुलसीदास को भी कहना पड़ा कि 'ढोल गँवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी' | हिन्दू धर्म का मध्ययुग का इतिहास इस बात का साक्षी है कि बहुपत्नीप्रथा और सतीप्रथा जैसी क्रूर और नृशंस प्रथाओं ने जन्म लेकर उसमें नारी के महत्त्व और मूल्य को प्रायः समाप्त ही
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