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________________ तेरापंथ की अग्रणी साध्वियाँ साध्वी श्री मधुस्मिता एक व्यक्ति ने एक बार तेरापंथ के प्रथम आचार्य भोखणजी से कहा-भीखणजी ! आपका तीर्थ अधूरा है। भीखणजी ने पूछा-कैसे ? उसने कहा-आपके तीर्थ में साधु, श्रावक और श्राविकाएँ हैं साध्वियाँ नहीं हैं । तब तक तेरापंथ में बहिनें दीक्षित नहीं हुई थीं। तीर्थ वास्तव में अधूरा था । संयोग से वि० सं० १८२१ में तीन बहिनें दीक्षित होने हेतु आचार्य भिक्षुक के सम्मुख उपस्थित हुई। आचार्य भिक्षु ने उनसे प्रश्न किया-यदि संयोगवश एक की मृत्यु हो जाए तो शेष दो को आजीवन संलेखना करनी पड़ेगी। तीन साध्वियों से कम रहना कल्पता नहीं। तत्क्षण तीनों ने कहा-हमें मंजूर है । आचार्य भिक्षु ने तीनों को प्रव्रजित कर लिया । साध्वियों की संख्या क्रमशः अभिवृद्धि को प्राप्त होती रही। न केवल संख्या की दृष्टि से ही, अपितु साध्वी समाज का गुणात्मक विकास भी होता गया। आज तेरापंथ धर्म संघ अपने दो शतक पूरे कर अब तीसरे शतक में चल रहा है। इस अवधि में लगभग दो हजार बहिनों ने दीक्षा ली और आत्म-साधना के साथ-साथ जनहित में पूर्ण योग दिया है। आचार्य भिक्षु ने साध्वी समाज को एक व्यवस्था दी। उत्तरवर्ती आचार्यों ने समय-समय पर उसको संवद्धित किया, युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ने तो साध्वी समाज के विकासार्थ अपने बहुमूल्य समय का विसर्जन किया है, कर रहे हैं। इस लेख में केवल उन साध्वियों के जीवन प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जिन्होंने साध्वी समाज का नेतृत्व कर अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर नारी जाति के जागरण में योगदान दिया है। अब तक तेरापंथ शासन में ११ साध्वी-प्रमुखाएँ हुई हैं१. महासती बरजूजी २. महासती हीराजी ३. महासती दीपांजी ४. महासती सरदारांजी ५. महासती गुलाबांजी ६. महासती नवलांजी * केसरीमल सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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