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स्थानकवासी ऋषि सम्प्रदाय की साध्वियों का संक्षिप्त परिचय : २९५
रामलाल जी और माता का नाम केशरीबाई था। कुन्ता निवासी श्री लाभचंद जी गनोर के साथ इनका पाणिग्रहण संस्कार हआ। २२ वर्ष की आयु में सं० १९६५ मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा के दिन धरियाबाद में श्री हमीरा जी की शिष्या बनीं। ___ इनका विहार स्थल मालवा और मध्यप्रदेश रहा । साध्वी श्री ज्ञानकुंवर जी
इनकी जन्मभूमि धरियाबाद ( मालवा ), पिता श्री ताराचन्द जी कोठारी और माता का नाम हुलासबाई था। दस वर्ष की अल्पायु में कून्था नामक ग्राम में सं० १९९१, माघ शुक्ल चतुर्थी, गुरुवार के दिन श्री मनसुख ऋषि से दीक्षित होकर श्री हगामवर जी की शिष्या बनीं। तीव्र बुद्धि के कारण इन्होंने संस्कृत, गुजराती, हिन्दी के साथ-साथ शास्त्रीयज्ञान भी प्राप्त किया। सं० १९९४, आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा के दिन भण्डारा ( मध्य प्रदेश) में इनका स्वर्गवास हो गया।
इनकी एक शिष्या श्री मगनकुँवर जी हुई। साध्वी श्री कस्तूराजी
इनका जन्म गरोठ ( मालवा ) में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री लक्ष्मीचन्द जी पोरवाड़ और माता का नाम श्रीमती चन्दनबाई था। माघ शुक्ल तृतीया वि० सं० १९२३ में इनका पाणिग्रहण संस्कार हुआ था। शाजापुर में आषाढ़ शुक्ल १२, सं० १९४९, में साध्वी श्री कासा जी की शिष्या बनीं और ज्ञानाभ्यास द्वारा शास्त्रों का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। मालवा, मेवाड़, मध्यप्रदेश, वागड़, बरार आदि प्रान्त इनके विचरण स्थल रहे । सं० १९८९ में इन्हें प्रवत्तिनी पद प्राप्त हुआ। .
सं० २००८ में कार्तिकवदि ८ के दिन स्वर्गवासी हो गयीं।
इनकी तीन शिष्याएँ हुई-(१) श्री जड़ावकुवर जी ( २) श्री इन्द्रकुंवर जी एवं ( ३ ) श्री नजर कुवर जी। . साध्वी श्री जड़ावकुवर जी
इनका जन्म धार जिला के कानवन में सं० १९४०, श्रावण शुक्ल षष्ठी दिन बुधवार को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री नन्दुलाल जी और माता का नाम श्रीमती मोतीबाई था। नागदा निवासी श्री लक्ष्मी चन्द्र जी के साथ पाणिग्रहण सम्बन्ध हुआ था। पीपलोदा में पं० मुनिश्री भैरों ऋषि से दीक्षित होकर साध्वी श्री कस्तूराजी की शिष्या बनीं । ये
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