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________________ स्थानकवासी ऋषि सम्प्रदाय की साध्वियों का संक्षिप्त परिचय : २९३ साध्वी श्री चन्द्रकुवरजी इनका जन्म कड़ा ( अहमद नगर ) में हुआ था। इनके पिता का नाम नवलमल जी सिंधी था। इनका विवाह पारनेर निवासी श्रीमान् चुन्नीलाल जी के साथ हआ था। डेढ़ वर्ष बाद उन्हें पतिवियोग का सामना करना पड़ा। १५ वर्ष की उम्र में उन्होंने श्री रंभा जी महाराज से दीक्षा ग्रहण की। ___ इन्होंने संस्कृत और प्राकृत के माध्यम से शास्त्री तक का ज्ञान प्राप्त किया। सं० १९९३ में जीवन की अन्तिम अवस्था दौंड (पूना ) में बिताकर स्वर्गवासी हुई। ___ इनकी दो शिष्याएँ हुई (१) श्री प्रभाकुवर जी और (२) श्री इन्द्रकुवर जी। साध्वी श्री आनन्दकुवरजी इनका जन्म सं० १९६० में माघ शुक्ल ७ (सप्तमी ) दिन सोमवार को हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती रतनबाई और पिता का नाम श्री लाधराम जी था । इनका विवाह मालेगाँव निवासी श्री मलतानमल जी के साथ हआ। पति की आज्ञा प्राप्त करके सं० १९७९ में बसंत पंचमी के दिन श्री रंभा जी की शिष्या बनीं। मनचर ( पूना), बम्बई, कर्णाटक इनका विचरण स्थल रहा । इनकी पाँच शिष्याएँ हुई (१) श्री सज्जनकुंवर जी (२) श्री पुष्प कुंवरजी (३) श्री मदनकुँवर जी ( ४ ) श्री वल्लभकुँवर जी और (५ ) श्री हर्षकुँवर जी। साध्वी श्री सोनाजी इनका जन्म संवत् १९०० में जावद ( मालवा-मंडल ) नामक कस्बे में हुआ था । इनकी माता का नाम रोडी बाई और पिता का नाम ओंकार जी था। तरुणावस्था में साध्वी श्री लछमा जी से दीक्षित होकर सं० १९२५ में उनकी शिष्या बनीं और शास्त्रीय ज्ञान अजित किया। सं० १९५६ में प्रतापगढ़ में संस्थारा द्वारा स्वर्गवासी हुईं। इनकी ग्यारह शिष्याएँ हुईं, जिनमें से पाँच के नाम उपलब्ध हैं। (१) श्री कासा जी ( २ ) श्री चम्पा जी ( ३ ) श्री बड़े हमीरा जी (४) श्री प्यारा जी और ( ५ ) श्री छोटे हमीरा जी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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