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२९० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं श्री पानकुवरजी __इन्होंने साध्वी श्री भूराजी से दीक्षा ग्रहण कर शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त किया। इनकी दो शिष्याएँ हुईं-(१) श्री प्रेमकुंवरजी एवं ( २) श्री फूलकुंवरजी। साध्वी श्री राजकुवरजी
ये रतलाम निवासी श्री कस्तूरचन्द जो मुणोत की धर्मपत्नी प्रेमकंवर की पुत्री थीं। ये वैशाख शुक्ल ६ (षष्ठी) मंगलवार सं० १९५८ में श्री भाजी से दीक्षित होकर उनकी शिष्या बनीं। इन्होंने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, उर्दू और फारसी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और विदुषी साध्वी बनीं। फाल्गुन शु० ४ बुधवार संवत् १९९६ को स्वर्गवासी हो गयीं। इनकी १४ शिष्याएँ हुईं।
(१) साध्वी श्री सुगनकुंवर जो, (२) साध्वी श्री चन्द्रकुंवरजी, ": (. ३) श्री जसकुंवर जी, (४) श्री शान्तिकुंवर जी, (५) श्री सिरे
कुंवर जी, (६) श्री विनयकुंवर जी, (७) श्री बदामकुंवर जी, (८) • श्री लाभकंवर जी, (९) श्री रमणीककुंवर जी, (१०) श्री सज्जन कँवर जी, (११) श्री चन्दनबाला जी, (१२) श्री गुलाबकुंवर जी, (१३ ) श्री माणककुंवर जी और ( १४ ) श्री उज्ज्वलकंवर जी।
इनमें साध्वी उज्ज्वलकुंवर जी की शिष्या-परम्परा आगे चली।
इनका विवाह न्यायडोंगरी निवासी श्री भागचन्द जी दूगड़ के साथ हुआ था। फाल्गन श० १२ सं० १९७९ को श्री प्रेमकंवर जी से २२ वर्ष की वय में दीक्षित होकर श्री राजकुंवर जी की शिष्या बनीं। आषाढ़ कृ० १४, सं० १९९४ में इनका स्वर्गवास हो गया । इनकी एक शिष्या हुईं-श्री सूरजकुंवर जी। साध्वी श्री उज्ज्वलकुवरजी ___ इनका जन्म चैत्र वदि १३ सं० १९७५ को बरवाला ( सौराष्ट्र) निवासी श्रीमान् माधव जी भाई डगली की धर्मपत्नी श्रीमती चंचलबाई की पुत्री के रूप में हुआ। इन्होंने दोक्षा के पूर्व ही संस्कृत, दर्शन, गुजराती, हिन्दी, उर्दू आदि का व्यापक अध्ययन कर लिया था। सं० १९९१ की " अक्षय तृतीया के दिन करमाला में मुनि श्री आनन्दऋषि जी से दीक्षित होकर श्री राजकुंवर जी की शिष्या बनीं और सं० १९९६ की फाल्गुन शु० ५ गुरुवार के दिन खामगाँव में प्रवर्तिनी पद मिला। बम्बई, पूना,
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