________________
स्थानकवासी ऋषि सम्प्रदायको साध्वियों का संक्षिप्त परिचय : २८७ का अध्ययन करती रहीं और फिर उन्हीं से १४ वर्ष की वय में संवत् २००७ में बैशाख २० तृतीया को दी क्षित हुईं। साध्वी श्री विमलकुंवरजी
ये राणावास ( मारवाड़ ) निवासी श्री दौलतरामजी की पुत्री हैं। इनका विवाह मारवाड़ निवासी श्री हीराचन्दजी के पुत्र से हुआ । सं० २०१० के वैशाख वदी २ को साध्वी श्री रतनकुँवरजी की 'शिष्या बनीं। साध्वी श्री चतरकुंवरजी
इनका जन्म सं० १९४० में कालूखेड़ा ( मालवा ) निवासी श्री हुकुमीचन्द जो भंडारी की धर्मपत्नी श्रीमती दयाकुँवर बाई की पुत्री के रूप में हुआ था। इनका विवाह रतलाम निवासी श्री हजारीमलजी के साथ हआ। किन्तु शीघ्र ही विधवा हो गईं। सं० १९६८ वैशाख शक्ल ३ ( अक्षयतृतीया) के दिन२८ वर्ष की अवस्था में दीक्षित होकर साध्वी श्री रतनकुंवरजी की शिष्या हुई। इनकी दो शिष्याएँ हुई-(१) श्री लक्षमाजी और ( २ ) श्री मृगावती जो। साध्वी श्री लछमाजी
'इनका जन्म कालूखेड़ा ( मालवा ) में सं० १९५४ में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री किशनाश्री और माता का नाम श्रीमती नवलकुंवर बाई था। सात वर्ष की कम उम्र में इनकी शादी हुई लेकिन ६ माह बाद ही पति स्वर्गवासी हो गये । सं० १९६९ मार्गशीर्ष वदी २ ( दूज ) १५ वर्ष की अवस्था में दीक्षित होकर साध्वी श्री चतरकवरजी की शिष्या बनीं। इन्होंने संस्कृत, प्राकत, हिन्दी, ऊर्द, फारसी आदि भाषाओं का भी अध्ययन किया । इनकी एक शिष्या श्री शांतिकुँवर जी हुई । साध्वी श्री मृगावतीजी
इनका जन्म सं० १९७१ में महू छावणो ( मध्यभारत ) में हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती घीसाबाई और पिता का नाम श्री पन्ना लालजी था। इनका विवाह श्री गेंदालालजी से हुआ था। सं० १९८९ मार्गशीर्ष वदो पंचमी के दिन तलगारा ग्राम में साध्वी श्री रतनकुंवरजी से दीक्षा ग्रहण कर साध्वी श्री चतरकुँवर की शिष्या हुईं। साध्वी श्री नन्दजी
इनका जन्म सं० १९१४ मार्गशीर्ष में हुआ था। इनके माता-पिता का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org