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________________ स्थानकवासी आचार्य अमरसिंहजी को परम्परा को जैन साध्वियों : २७५ साध्वी सज्जनकुवरजी महासती हुकुमकुँवरजी की चौथी शिष्या सज्जनकुंवर थीं। आपका जन्म उदयपुर के बाफना परिवार में तथा पाणिग्रहण दूगड़ों के परिवार में हुआ था ! आपकी एक शिष्या हुई जिनका नाम मोहनकुँवरजी था। मोहनकँवरजी की जन्मस्थली अलवर तथा ससुराल खण्डवा में थी। वर्षों तक संयम-साधना कर उदयपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। साध्वी राजकुवरजी महासती हुकुमजी की पाँचवीं शिष्या राजकंवरजी थीं। आप उदयपुर के माहेश्वरी वंश की थीं। महासती हुकुमकुँवरजो की एक शिष्या देवकुँवरजी थीं जो उदयपुर के सन्निकट कर्णपुर ग्राम की निवासिनी थीं। हुकुमकुँवर की सातवी शिष्या गेंदकुँवर थीं। आपका जन्म उदयपुर के सन्निकट भुआना के पगारिया कुल में हुआ था। चन्देसरा गाँव के बोकड़िया परिवार में आपकी ससुराल थी। सं० २०१० ब्यावर में आपका स्वर्गवास हुआ। साध्वी मदनकुँवरजी ___ आपकी जन्मस्थली उदयपुर थी । आपकी प्रतिभा गज़ब की थी। एक बार आचार्य श्री मुन्नालालजी जो आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् थे, उन्होंने उदयपुर में आयोजित एक प्रवचन सभा में मदनकुँवरजी से उन्नीस प्रश्न किये । महासतीजी ने उनके सभी प्रश्नों का अतिशयपूर्वक उत्तर दिया। मदनकुँवरजी जिस प्रकार प्रकृष्ट प्रतिभा की धनी थीं उसी प्रकार उत्कृष्ट आचारनिष्ठा भी थीं। गुप्त तप उन्हें पसन्द था। वे साध्वियों के आहारादि से निवृत्त होने पर जो अवशेष आहार बच जाता और पात्र धोकर जो पानो बाहर डालने का होता उसी को खा-पीकर सन्तोष कर लेतीं । सन् १९४१ में तीन दिन के संथारे के साथ उदयपुर में उनका स्वर्गवास हुआ। साध्वी सल्लेकुवरजी ___ आपकी जन्मस्थली उदयपुर थी। आपका पाणिग्रहण उदयपुर के मेहता परिवार में हुआ था। आपमें महासतीजी के उपदेश को सुनकर वैराग्य-भावना जागृत हुई । उसके फलस्वरूप आपने अपनी पुत्री सज्जनकुँवर सहित आर्हती दीक्षा अंगीकार की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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