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२७२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं साध्वी सज्जनकुवरजी
सज्जनकुंवरजी का जन्म उदयपुर राज्य के तिरपाल ग्राम के बंबोरी परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम भैरूलालजी और माता का नाम रंगूबाई था । १३ वर्ष की अवस्था में आपका पाणिग्रहण कमोल के ताराचन्दजी दोशी के साथ सम्पन्न हुआ। आपका गृहस्थाश्रम का नाम जमुनाबाई था । सोलह वर्ष की उम्र में पति का देहान्त होने पर विदुषी महासती आनन्दकंवरजी के उपदेश से सं० १९७६ में दीक्षा ग्रहण की। ५४ वर्षों तक दीक्षा पर्याय का पालन कर सं० २०३० में आपका यशवन्तगढ़ में स्वर्गवास हुआ । सज्जनकुंवरजी की एक शिष्या हुई जिसका नाम बालब्रह्मचारिणी कौशल्याजी था। कौशल्याजी की चार शिष्याएं हुई-(१) विजयवतीजी, (२) हेमवतीजी, (३) दर्शनप्रभाजी और (४) सुदर्शनप्रभाजी। साध्वी कंचनकुंवरजी
महासती लहरकुंवरजी की दूसरी शिष्या कंचनवर थीं। आपका जन्म उदयपुर राज्य के कम्गेल गाँव के दोशी परिवार में हुआ। तेरह वर्ष की आयु में आपका विवाह पदराडा में हुआ और चार महीने के पश्चात् ही पति के देहान्त हो जाने से लघुवय में विधवा हो गई। महासती लहरकुंवरजी के उपदेश को सुनकर दीक्षा ग्रहण की। आपका स्वर्गवास नान्देशमा ग्राम में संथारे के साथ हुआ। आपकी एक शिष्या हैं जिनका नाम महासती वल्लभकुंवरजी है। महासती अमृताजी
महासती सद्दाजी की पाँच शिष्याओं में रत्नाजी, रंभाजी एवं नवलाजी की पाँच शिष्याएँ हुई, उनमें से चार शिष्याओं के परिवार का परिचय दिया जा चुका है। उनकी पाँचवीं शिष्या अमृताजी हुई। उनकी परम्परा में ही रायकुंवरजी हुई जो महान् प्रतिभा सम्पन्न थीं। महासती रायकुँवरजी
आपकी जन्मस्थली उदयपुर के सन्निकट कविता ग्राम में थी। आप ओसवाल तलेसरा वंश की थीं। आपके अन्य जीवनवृत्त के सम्बन्ध में विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकी है। पर यह सत्य है कि वे एक प्रतिभासम्पन्न साध्वी थीं। आपके उपदेश से प्रभावित होकर अनेक शिष्याएँ बनीं । उनमें से दस शिष्याओं के नाम उपलब्ध होते हैं, अन्य शिष्याओं के विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।
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