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२६८ : जैनधर्म को प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं चुन्नीबाई था । लघुवय में आपका पाणिग्रहण तीरपाल में हुआ किन्तु कुछ समय के पश्चात् पति का देहान्त हो जाने से महासती छगनकुंवरजी के उपदेश को सुनकर विरक्ति हुई और १७ वर्ष की उम्र में आपने प्रव्रज्या ग्रहण की। आपकी मुख्य शिष्यायें निम्न थीं-माणककुंवरजी, धूलॉवरजी, आनन्दकुंवरजी, लाभकुंवरजी, सोहनकुंवरजी, प्रेमकुंवरजी और मोहनकुंवरजी।
वि० सं० १९८९ में बारह दिन का संथारा पूर्ण करने पर आपका स्वर्गवास हुआ। साध्वी माणककुँवरजी
आपका जन्म उदयपुर राज्य के कानोड में वि० सं० १९१० में हुआ। आपकी प्रकृति सरल एवं सरस थी। सेवा की भावना अत्यधिक थी। ७५ वर्ष की उम्र में वि० सं० १९८५ में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ। साध्वी धूलकुंवरजी
आपका जन्म उदयपुर राज्य के मादडा ग्राम में वि० सं० १९३५ में हुआ। आपके पिता का नाम श्री पन्नालाल एवं माता का नाम नाथीबाई था। १३ वर्ष की आयु में आपका पाणिग्रहण चिमनलाल के साथ हुआ, किन्तु कुछ समय पश्चात् पति के देहान्त होने पर, आपकी भावना फूलकुंवरजी के उपदेश को सुनकर संयम ग्रहण करने की हई। बाद में वि० सं० १९५६ में महासती फूलकुवर से दीक्षा ग्रहण की। आपकी शिष्यायों में आनन्दकुंवरजी, सौभाग्यकुवरजी, शम्भूकुवरजी, शीलकुंवरजी, मोहनकुंवरजी, कंचनकुंवरजी, सुमनवतीजी और दयाकुंवरजी प्रमुख थीं। पुष्करमुनिजी को सर्वप्रथम आपके उपदेश सुनने से ही वैराग्य जागृत हुआ था। आपका विहार-क्षेत्र मेवाड़, मारवाड़, मध्य प्रदेश, अजमेर और ब्यावर था। वि० सं० २००३ में आप गोगुन्दा ग्राम में विराजी और वि० सं० २०१३ में २४ घण्टे के संथारे के बाद आपका स्वर्गवास हुआ। साध्वी लाभकुवरजी __आपका जन्म वि० सं० १९३३ में उदयपुर राज्य के ढोल ग्राम में हुआ
था। आपके पिता का नाम मोतीलालजी ढालावत और माता का नाम तीजबाई था। लघुवय में ही पति का देहान्त हो जाने से आपका मन वैराग्य की ओर अग्रषित हुआ । महासती फलवर के उपदेश से प्रभावित होकर वि० सं० १९५९ में आपने मारवाड़ में दीक्षा ग्रहण की। आपकी
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