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________________ २३६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं लिए श्रावण शुक्ला १२ ता० ५/८/१९७९ रविवार के दिन ऐरावती ने सोनागिरि सिद्धक्षेत्र पर आचार्यश्री विमलसागर महाराज के द्वारा क्षु ल्लिका दीक्षा ग्रहण की। उस समय नाम बदल कर अनंगमती रखा गया। वर्तमान में आप आ० स्याद्वादमती के पद को अलंकृत करते हुए आचार्यश्री के संघ में धर्मध्यान में तत्पर हैं। आर्यिका ज्ञानमती माताजी सौराष्ट्र के अन्तर्गत पोशीना (सावरकाण्डा) नामक नगर है । इस नगर के श्री सांकलचन्द्र जी एवं श्रीमती मणिबाई जैन नामक श्रावक दम्पति से कञ्चनबाई नामक बाला का जन्म हआ था। कंचनबाई जैन सदैव जिनेन्द्र भगवान् की उपासना में तल्लीन रहती थी। संयोगवश मगसिर कृष्णा ५ संवत् २०३१ के शुभ दिन कंचनबाई ने क्षुल्लिका दीक्षा आचार्यश्री १०८ सुमतिसागर महाराज से ली। अनन्तर माघ शुक्ला ३ संवत् २०३२ को इन्हीं महाराजश्री से आर्यिका के महाव्रतों के साथ ज्ञानमती नाम को ग्रहण किया । आप ज्ञान का संवर्द्धन करती हुई बालब्रह्मचारी जीवन का यापन कर रही हैं। आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी हस्तिनापुर में बन रही महान् जम्बूद्वीप रचना की पावन प्रेरिका पू० आर्यिकाश्री से सारा देश परिचित है। __आपका जन्म माता मोहिनी की कुक्षि से वि० सं० १९९१ (सन् १९३४) की आसोज शुक्ला पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) को हुआ । सन् १९५२ की आसोज शुक्ला पूर्णिमा को ही आपने सप्तम प्रतिमारूप ब्रह्मचर्य व्रतं ग्रहण किया और सन् १९५३ में क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की। आपको पूज्य शांतिसागरजी म० के दर्शन एवं सान्निध्य का लाभ मिला । सन् १९५६ में उन्हीं के पट्टधर आचार्य वीरसागरजी से आपने आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। आपकी अनेक शिष्यायें हैं । आपकी बौद्धिक प्रतिभा विलक्षण है । अध्ययन अध्यापन आपकी साधना का महत्वपूर्ण अंग है। आपने ८ बड़े और १७८ छोटे ग्रन्थ लिखे हैं । अष्टसहस्री जैसे क्लिष्टतम दार्शनिक ग्रन्थ का आपने अनुवाद किया है। आप विलक्षण प्रतिभा की धनी प्रभावशाली साध्वी रत्न हैं। (सम्पादक) सूचना-दिगम्बर परम्परा में आचार्य विद्यासागरजी की संघस्थ आर्यिकाओं और क्षुल्लिकाओं का परिचय प्राप्त नहीं होने से नहीं दिया जा सका है-एतदर्थ क्षमाप्रार्थी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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