SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आर्यिकायें: २२५ आत्मशुद्धि में प्रगति की, जिससे पू० आचार्यश्री वीरसागर जी से आर्यिका के महाव्रत ग्रहण कर नवीन 'विमलमती' नाम को प्राप्त किया । आर्यिका वीरमतो जो धार्मिक नियमादि परिपालन करने में निपुण श्री दादा भगदुम और श्रीमती कृष्णाबाई की पुत्री पद्मावती का जन्म नसलापुर ताल्लुका रायबाग जिला बेलगाँव (कर्नाटक) में हुआ था । इनका जन्म १९२५ में हुआ था । बाल्यावस्था से ही मुनिसेवा, जिनदर्शन एवं धार्मिक कार्यों में अभिरुचि होने से पद्मावती २ मई १९७६ में आर्यिका सुवर्णमती से दीक्षित होकर आर्यिका वीरमती हो गयीं । वर्तमान में आर्यिका वृत्ति का आचरण करती हुईं साधु संगति में गाँव-गाँव में भ्रमण कर रही हैं । आर्यिका वीरमती जो नश्वर जीवन को सफल बनाने का एकमात्र मात्र आधार संयम है अतएव लोनी (उत्तर प्रदेश) निवासी श्री बंसीलाल एवं श्रीमती सुन्दरबाई की पुत्री जमनाबाई ने आचार्यश्री महावीरकीर्ति जी से आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर आ० वीरमती अभिधान को प्राप्त किया । आप संयम यथाविधि पालन कर रही हैं । आर्यिका वीरमती माताजी ब्र० चाँदबाई ने अपने पति श्री कपूरचन्द्र भँवसा के वियोग के दुःख को सहन किया । संसार के स्वरूप का चिन्तवन किया और अपने वैधव्य जीवन को शान्ति और धर्म की गोद में समर्पित करने का निश्चय किया । चाँदबाई के पिता श्री जमनालाल जी सोनी और माता श्रीमती गुलाबबाई थीं। लगभग वि० सं० १९८८ में चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के सान्निध्य से चारित्रिक विशुद्धि बढ़ती गयी और चाँदबाई पौषवदी ५ वि० सं० १९९५ के दिन सिद्धवरकूट के परमपावन स्थान पर आचार्यश्री वीरसागर से क्षुल्लिका दीक्षा लेकर क्ष० वीरमती बन गयीं । कालान्तर में महाराजश्री ने कार्तिक सुदी ११ सं० १९९६ के शुभदिन इन्दौर के विशाल समारोह में मातुश्री को आर्यिका के गौरव से गौरवान्वित किया । आर्यिका वीरमती माताजी आचार्यशिरोमणि देशभूषण महाराज ने अनेक नर-नारियों को सम्यक् मोक्षमार्ग का अवलम्बन कराया है । इन्हीं की शिष्य परम्परा की एक १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy