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________________ ८-१५वीं शताब्दी की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : १८३ अर्थात्-अनुक्रम से दो चक्रवर्ती, पांच वासुदेव, पाँच चक्रवर्ती, एक वासुदेव, एक चक्रवर्ती, एक वासुदेव, दो चक्रवर्ती, एक वासुदेव और एक चक्रवर्ती होते हैं-यह गाथा एक साध्वीजी मधुर कंठ से दोहरा रही थों । हरिभद्र उस मंजुल एवं विलक्षणा वाणी पर ठहर गये । इस मधुर गाथा को सुनते हुए तथा उसका अर्थ समझने की कोशिश करते हुए वे बहुत देर तक वहां खड़े रहे । सुनने में आनन्द आ रहा था पर उसका अर्थ न लगा सके । उन्हें अपनी प्रतिज्ञा स्मरण हो आई तथा वे उस साध्वी के पास जाकर उन्हें अपना गुरु मान लिए। उन्होंने साध्वीजी को इस गाथा का अर्थ समझाने के लिए विनयपूर्वक निवेदन किया। महत्तरा याकिनी ने बद्धिमतापूर्वक उसका अर्थ समझाया, जिससे विद्वान् राजपुरोहित संतुष्ट हुए और शिष्य बना लेने की विनती की। साध्वोजो ने इस पर उत्तर दिया कि यदि आप किसी को गुरु बनाना चाहते हैं तो मेरे गुरु के पास जाइये। हरिभद्रजी साध्वी की बात मानकर आचार्य जिनदत्तसूरि की सेवा में गये। जिनदत्तसूरिजी प्रतापी, तेजस्वी, शान्त एवं गम्भीर महात्मा थे। उनका तप, जप, ज्ञान और संयम देखकर हरिभद्रजी को जैन धर्म पर आस्था हो गई और सूरिजी के पास दीक्षा ग्रहण की। याकिनी महत्तरा की विद्वत्ता तथा पाण्डित्य से वे इतने प्रभावित थे कि उन्होंने अपनी बृहत् रचनाओं के अन्त में 'याकिनी महत्तरा सुनू" अर्थात् अपने को याकिनी के पुत्रतुल्य कहा है। यह घटना जैन धर्म की साध्वियों के इतिहास में बहुत महत्त्व रखती है क्योंकि एक साध्वो इतने प्रकाण्ड विद्वान् के गुरु पद पर प्रतिष्ठित हुई। आठवीं शताब्दी के ये आचार्य हरिभद्रसूरि जैन धर्म के प्रकाण्ड विद्वान् थे । उनके ज्ञान के गर्व को दूर करने वाली यह प्रतिभाशाली विदुषी साध्वी थीं। यह वास्तव में तत्कालीन तथा वर्तमान महिलाओं के लिए गौरव की बात है। १. डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान-पृ० १० २. (क) आदरीश बनर्जी-जैन कॉमिओ ऐट चित्तौड़गढ़-छोटेलाल स्मृति ग्रन्थ, पृ० ७६ (ख) मुनि सुशीलकुमार-जैन धर्म का इतिहास-पृ० १६५ (ग) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ पृ० २१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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