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१५० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं
एक समय कालककुमार अपनी बहिन सरस्वती के साथ नगर के बाहर उद्यान में गये, वहाँ एक जैन मुनि धर्मोपदेश दे रहे थे। दोनों ने श्रद्धा से आचार्य का उपदेश सुना और गहन विचार में खो गये । आत्मोन्नति हेतु दोनों ने संसार-त्याग का दृढ़ निश्चय कर माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर दीक्षा अंगीकार की।
एक समय द्वितीय कालकाचार्य विहार करते हुए उज्जयिनी की ओर आये। नगर के बाहर उद्यान में आचार्य कालक के दर्शनार्थ सरस्वती साध्वी अन्य साध्वियों के साथ आई । उस समय उज्जयिनी का तत्कालीन राजा गर्दभिल्ल वन विहार करके लौट रहा था। उसकी दष्टि साध्वी सरस्वती पर पड़ी तथा उनकी सुन्दरता देखकर वह मोहित हो गया। उसने अपने अनुचरों को भेजकर बलात् अपहरण करवाकर उन्हें अपने अन्तःपुर में पहुँचा दिया ।3 साध्वी सरस्वती को बन्दी बनाने के पश्चात् अनेक प्रकार की यातनाएँ, भय और प्रलोभन भी दिये गये । परन्तु साध्वी सरस्वती अपने ब्रह्मचर्य प्रण पर अटल रही।
तत्कालीन श्रावक संघ तथा अन्य प्रतिष्ठित नागरिकों ने राजा को बहुत समझाया परन्तु उसने अपनी जिद नहीं छोड़ी। जब राजा को समझाने-बुझाने पर भी कुछ असर नहीं हुआ तो मुनि कालक (सरस्वती के भाई) साधु वेष त्यागकर युद्ध की तैयारी करने लगे ।
कालकाचार्य (मुनि कालक) ने सिन्धु देश के शकशाहों (राजाओं) की मदद से उज्ययिनी पर चढ़ाई की तथा राजा गर्दभिल्ल को युद्ध में परास्त किया और अपनी बहन साध्वी सरस्वती को विमुक्त किया।
साध्वी सरस्वती ने प्रायश्चित्त करते हुए जीवन पर्यन्त कठोर तप किया तथा अन्त में समाधिपूर्वक देहत्याग किया। इस घटना से यह प्रमाणित होता है कि उत्तर भारत में मुनि तथा साध्वी संघ का अस्तित्व ई० स० पूर्व प्रथम शताब्दी में विद्यमान था । तत्कालीन सामाजिक परि१. (क) निशीथचूर्णि-भाग ३, पृ० ५९-६० (ख) डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान
पृ० ३४ २. डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान-पृ० ३४ ३. उपा० अमरमुनिजी-रलमुनि स्मृति ग्रन्थ-पृ० २० ४. वही पृ० २०
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