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५२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं का तात्पर्य है, साधु किसी स्त्री से बातचीत न करें, किसी स्त्री के संसर्ग का ध्यान न करें, किसी स्त्री से एकान्त में अधिक वार्तालाप न करें, अल्प भोजन करें और जिस गृह में स्त्री रहती हो वहाँ न रहें।'
अतः तीर्थंकर पार्श्वनाथ के काल में चार व्रत या यामों का धर्म आगे चल कर महावीर के समय पाँच महाव्रत में परिणित हो गया जिससे महिलाओं को आत्मोन्नति के इस मार्ग पर जाने की अधिक प्रेरणा मिली।
१. बी. एन• लूनिया-प्राचीन भारतीय संस्कृति-पृ० २४४
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