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४२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं
अतः संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राजा दशरथ से "वर" मांग कर उन्हें प्रतिज्ञा के बन्धन से मुक्त करने, भरत को असमय संसार त्यागने से रोकने तथा राम को वन जाने पर कई अनार्य राजाओं को जीत कर चारों ओर शान्ति स्थापित करने का श्रेय कैकेयी को ही है। ___ जैन इतिहास में इस नारी के बुद्धिचातुर्य की भूरि-भूरि प्रशंसा को गई है।
अंजना' :
पतिव्रता नारी अंजना की गौरव गाथा, भारतीय महिलायें बहुत श्रद्धा और भक्ति से गाती हैं । अञ्जना महेन्द्रनगर के राजा महेन्द्र तथा रानो अरिदमन की अत्यन्त लावण्यमयी पुत्री थी। अपने सौ बन्धुओं के साथ बाल-क्रीड़ाओं तथा अन्य कलाओं की शिक्षा प्राप्त करने में इसका बाल्यकाल व्यतीत हुआ। यौवन वय प्राप्त होने पर माता-पिता ने अंजना का विवाह राजा प्रहलाद के शरवीर पवनंजय के साथ तय किया । अंजना के रूप-सौन्दर्य की प्रशंसा सुनकर, पवनंजय विवाह के पूर्व अपने मित्र प्रहसित को लेकर अंजना के महल में गया । वहाँ गुप्त रूप से अपनी होने वाली पत्नी का सुन्दर रूप देखकर संतुष्ट हआ। उस समय पवनंजय ने अंजना की सखियों का वार्तालाप सुना। वसन्ततिलका ने अंजना को सम्बोधित करते हुए कहा, "हे सखी, तू वास्तव में भाग्यवान् है कि तुझे पवनंजय जैसा पति मिला-जो चन्द्रमा की किरणों के समान निर्मल एवं
है, निर्देश देती है एवं राम के प्रति शुभेच्छा प्रकट करती है-जब कि मानस में कैकेयी के इन कृत्यों का प्रतिरोध है । मेरी मान्यता में मानस के रचनाकार के मन में कैकेयी के प्रति कोई जबरदस्त पूर्वाग्रह रहा होगा ।
कैकेयी के चरित्र के सम्बन्ध में ऐतिहासिक तथ्यों का सत्यापन करते हुए यह परिलक्षित है कि कैकेयी जैसी विदुषी और विवेकी नारी मन्थरा दासी के बहकावे में आकर राम को वनवास और अपने पुत्र को राजगद्दी की अभिलाषा प्रकट करती है । जैन साहित्य में मंथरा की कुटिल बुद्धि के सम्बन्ध का कहीं भी उल्लेख नहीं है। अतः कैकेयी का चरित्र जैन
साहित्य में रामचरितमानस के सभी दोषों से बचा हुआ है । १. पउमचरियं, प्रथम खण्ड, उद्देश १५-१७; पृष्ठ १५३-१७८
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