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जैन धर्म में अहिंसा
प्रद कर्म में-हरिकीर्तन कर्म, अध्यात्म कर्म और हुकुमरजाई कर्म समझे जाते हैं।
यद्यपि कर्मों को गुरुओं ने प्रधानता दी है, वैदिक कर्मकाण्ड का विरोध किया है, जिसमें योग या यज्ञ के नाम पर हिंसाएँ की जाती हैं। इस सम्बन्ध में योग और योगी की व्याख्या करते हुए नानक ने कहा है
"जोग न हिंसा जोग न डडे, जोग न भसम चढ़ाइए । जोग न मुडी मुड मुडाइए, जोग न जिमी बाइए। अंजन माहि निरंजन रहिए, जोग जुगति तउ पाइए।"'
___ अर्थात न हिंसा करने, न भस्म लगाने, न सिर मुड़ा लेने को ही योग कहा जा सकता या इस तरह के कर्म करने वालों को ही योगी समझा जा सकता है। योगी तो उसे कहते हैं जो निम्नलिखित विचार का होता है
"गल्ली जोग न होई। एक दष्टि कर समसरु जागे
जोगी कहीये सोई।"२ ____ अर्थात् जिसकी दृष्टि एक है, जो सब को समान रूप से देखता है, ऐसा समता-भाव रखनेवाला ही वास्तविक योगी होता है। इतना ही नहीं बल्कि अहिंसा के सिद्धान्त को प्रमुखता देते हए उसे अपने प्रथम धर्मोपदेश में ही गुरुओं ने स्थान दिया है, जो इस प्रकार है
१. 'प्राज' (दैनिक पत्रिका), गुरुनानक विशेषांक, २३ नवम्बर १९६६,
पृ० १४. २. वही।
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