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________________ जैन धर्म में श्रहिंसा "अज" शब्द, जिसका प्रयोग यज्ञों के प्रसंग में होता है, का सही अर्थ क्या है, इस सम्बन्ध में एक बार ऋषियों एवं देवताओं के बीच मतभेद हुआ । ऋषियों ने "अज" शब्द का अर्थ 'बीज' या 'अन्न' लगाया तथा देवताओं ने 'बकरा' | अतः ऋषियों ने यज्ञ में अन्न या बीज के प्रयोग की विधि बताई और देवताओं ने बकरे की बलि का विधान किया। संयोगवश उसी समय राजा वसु या उपरिचर वहाँ पहुँच गए। जिन्हें दोनों ही पक्षों ने सही निर्णय देने को आग्रह किया । किन्तु उपरिचर ने देवताओं का पक्षपात करते हुए निर्णय दिया कि "अज" शब्द का अर्थ होता है छाग या बकरा । यह सुनते ही ऋषिगण कुपित हो गए और देव पक्ष की बात कहने बाले वसु को यों शाप दिया ३४ " राजन् ! तुमने यह जानकर भी कि "अज" का अर्थ अन्न है, देवताओं का पक्ष लिया है, इसलिए स्वर्ग से नीचे गिर जाओ । आज से तुम्हारी आकाश में विचरने की शक्ति नष्ट हो गई । हमारे शाप के आघात से तुम पृथ्वी को भेदकर पाताल में प्रवेश करोगे ।" ऋषियों के इतना कहते ही उसी क्षण राजा उपरिचर आकाश से नीचे आ गए और तत्काल पृथ्वी के विवर में प्रवेश कर गए ।" इससे स्पष्ट हो जाता है कि "अज" शब्द का अर्थ बकरा न होकर बीज अथवा अन्न ही होता है । अतः यज्ञ में बकरे या अन्य किसी पशु की हिंसा नहीं करनी चाहिए । अनुशासन पर्व में अहिंसा को नैतिक या धार्मिक दृष्टि से बहुत ही ऊँचा स्थान दिया गया है । अतः कहा गया है कि अहिंसा परम धर्म है, परम तप हैं, परम सत्य है और अन्य धर्मों की उद्गम१. सुरपक्षो गृहीतस्ते यस्मात् तस्माद् दिवः पत १५० अद्यप्रभृति ते राजन्नाकाशे विहता गतिः । मच्छापाभिघातेन महीं भित्वा प्रवेक्ष्यसि ॥१६॥ ततस्तस्मिन् मुहूर्तेऽथ राजोपरिचरस्तदा । प्रघो वै सम्बभूवाशु भूमेर्विवरगो नृप ॥ १७॥ श्र० ३३७; हिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः । अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते । Jain Education International सम्पूर्ण अध्याय भी देखें । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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