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________________ जैनेतर परम्पराओं में हिंसा २६ जाता है और नेवले को बिलाव, बिलाव को कुत्ता और कुत्ते को चीता चबा जाता है ॥२१॥ १ प्रस्तुत श्लोकों में हिंसा के सिद्धान्त को अपनाया गया है इसमें कोई शक नहीं। लेकिन यहाँ पर खासतौर से राजा या क्षत्रिय के लिए कहा गया है कि वह हिंसा करे। क्योंकि अपने राज्य के विस्तार के लिए उसे दूसरे राजा को मारना या कष्ट पहुंचाना ही होगा अन्यथा उसका राज्य-प्रसार नहीं हो सकता । इसके अलावा यदि कोई अन्य राष्ट्र उस पर आक्रमण कर देता है तो उस समय भी अपनी रक्षा करना उसके लिए आवश्यक हो जाता है । जहाँ तक गृहस्थों की बात है, यह सर्वमान्य है कि खेती या गृहस्थी संबंधी अन्य कार्यों में हिंसा होती है किन्तु इसमें यह देखा जाता है कि कर्त्ता का उद्देश्य क्या है ? खेती करना अथवा हिंसा करना ? किन्तु अन्य जगहों पर शान्तिपर्व में अहिंसा के सिद्धान्त की पूर्णतः पुष्टि हुई है जो व्यास के द्वारा शुकदेव को दिए गए उपदेशों में पाई जाती है : "जब जीवात्मा सम्पूर्ण प्राणियों में अपने को और अपने में सम्पूर्ण प्राणियों को स्थित देखता है, उस समय वह ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है ।। २१॥ अपने शरीर के भीतर जैसा ज्ञानस्वरूप आत्मा है वैसा ही दूसरों के शरीर में भी है; जिस पुरुष को निरन्तर ऐसा ज्ञान बना रहता है वह अमृतत्व को प्राप्त होने में समर्थ होता है ॥२२॥ १. नाच्छित्वा परमर्माणि नाकृत्वा कर्म दुष्करम् । नाहत्वा मत्स्यघातीव प्राप्नोति महतीं श्रियम् ॥ १४ ॥ नाघ्नतः कीर्तिरस्तीह न वित्तं न पुनः प्रजाः । इन्द्रो वृत्रवधेनैव महेन्दः समपद्यत ।। १५ । न हि पश्यामि जीवन्तं लोके कञ्चिदहिंसया । सवैः सत्वा हि जीवन्ति दुर्बलैर्बलवत्तराः ॥ २० ॥ नकुलो मूषिकानत्ति बिडालो नकुलं तथा । बिडालमत्ति श्वा राजश्वानं व्यालमृगस्तथा ॥ २१॥ शां० प० अ० १५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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