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________________ गांधीवादी अहिंसा २५१ इसमें कोई शक नहीं कि खेती में अनेक प्राणियों की हिंसा होती है, लेकिन इसमें भी किसी आशंका की कल्पना तक नहीं हो सकती कि श्वासोच्छवास में हजारों सूक्ष्म जीवों का नाश होता है। अर्थात् श्वासोच्छवास जिस प्रकार जरूरी है, ठीक उसी प्रकार खेती भी आवश्यक है, इसे रोका नहीं जा सकता। जो लोग खेती को त्यागकर भिक्षाटन करना चाहते हैं, उनकी यह बहुत बड़ी भूल है, वे भी खेती से होनेवाली हिंसा के दोषी हो जाते हैं. यदि खेती करने में दोष है, क्योंकि अन्न तो किसी न किसी के द्वारा की गई खेती के फलस्वरूप ही मिलता है। अत: भिक्षाटन करनेवाला अपने को हिंसा के दोष से मुक्त न समझे, यदि वह समझता है कि खेती करना दोषपूर्ण है। यदि कोई अन्य व्यापार करना चाहता है तो उसमें भी हिंसा होती है जैसे रेशम का धन्धा जिसमें रेशम के कीड़ों की हिंसा होती है; मोती का व्यापार, जिसमें सीप का कीड़ा उबाला जाता है। इसके अलावा ऊपर सिर करके चलनेवाले व्यक्तियों की, जो किसी प्राणी के दब जाने के विषय में सोचते भी नहीं, तुलना उन खेतीहरों से नहीं की जा सकती, जो प्राणियों को बचाते हुए खेती करते हैं यानी जिनका उद्देश्य जीव हिंसा करना नहीं होता, जो बड़े ही विनम्र होते हैं, जगत के पालनहार होते हैं। खेती एक आवश्यक एवं शद्ध यज्ञ है, जिसे धर्मनिष्ठ लोग करते हैं।' अहिंसा का आर्थिक रूप : 'जो बात शुद्ध अर्थशास्त्र के विरुद्ध हो वह अहिंसा नहीं हो सकती। जिसमें परम अर्थ है, वह शद्ध है। अहिंसा का व्यापार घाटे का नहीं होता । अहिंसा के दोनों पलड़ों का जमा-खर्च शून्य होता है ।२ इस सिद्धान्त का प्रयोग खादी पहनने में दिखाया गया है। गांधीजी ने स्वयं कहा है कि खादी पहनने में अहिंसा, राजकाज तथा अर्थशास्त्र तीनों का ही समावेश पाया जाता है।३ खादी तैयार करने में उतनी १. गांधीजी, अहिंसा, प्रथम भाग, खण्ड १०, पृ० ३५-३६. २. वही, पृ. ११७. ३. वही,पृ० १७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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