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जैन हटि से अहिंसा
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कुछ दे देता है ताकि समाज के लोग उसे कंजूस न कहें या कठोर दिलवाला न कहें ।
६. गौरवदान करना गौरवदान कहलाता है ।
७. अधर्मदान पुष्टि होती है, उसे में रत रहनेवालों को
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यश प्राप्ति के लिए गर्वपूर्वक धन का त्याग
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८. धर्मंदान धर्म के लिए दिया गया दान धर्मदान कहलाता है । समभावी मुनियों को, जिनके लिये सोना और राख में कोई अन्तर नहीं होता, दान देना धर्मदान की श्रेणी में आता है ।
जिस दान से धर्म की पुष्टि न होकर अधर्म की अधर्मंदान कहते हैं। हिंसा, झूठ, चोरी आदि कुछ देना अधर्मंदान है।
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९. करिष्यतिदान किया गया दान करिष्यतिदान कहलाता है |
भविष्य में प्रत्युपकार पाने के उद्देश्य से
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१०. कृतदान पहले के किए गये उपकार से उऋण होने के लिए जो दान दिया जाता है, वह कृतदान के नाम से संबोधित होता है ।"
१. कृपणेऽनाथदरिद्रे व्यसनप्राप्ते च रोगशोकहते । यद्दीयते कृपार्थात् अनुकम्पा तद्भवेद्दानम् ॥ अभ्युदये व्यसने वा यत् किंचिद्दीयते सहायतार्थम् । तत्संग्रहतोऽभिमतं मुनिभिर्दानं न मोक्षाय || राजारक्षपुरोहित मधुमुखमाविल्लदण्डपाशिषु
च ।
यद्दीयते भयार्यात्तदुभयदानं बुधै । अभ्यर्थितः परेण तु यद्दान जनसमूहगतः । परचित्तरक्षणार्थं लज्जायास्तद्भवेद्दानम् ॥ नटनर्त्तमुष्टिकेभ्यो दानं सम्बन्धिबन्धु मित्रेभ्यः । यद्दीयते यशोऽथं गर्वेण तु तद्भवेद्दानम् ॥ हिंसानृतचौर्योद्यतपरदारपरिग्रहप्रसवतेभ्यः । यद्दीयते हि तेषां तज्जानीयादधर्माय ॥
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