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________________ १८६ जैन धर्म में अहिंसा अहिंसा के रूप : अभी हमलोगों ने हिंसा के दो रूप देखे - भाव और द्रव्य, और उन दोनों से बने हए चार विकल्प भी। ठीक उसी तरह अहिंसा के भी दो रूप होते हैं, भाव अहिसा यानी मन में हिंसा न करने की भावना का जाग्रत होना। जैसे कोई व्यक्ति यह संकल्प करता है कि मैं किसी भी जीव का घात नहीं करूंगा। द्रव्य अहिंसा-यानी मन में आये हुए अहिंसा के भाव को क्रियारूप देना अर्थात् उसका वचन और काय से पालन करना, जैसे हिंसा न करने का संकल्प करनेवाला वास्तव में जिस दिन से संकल्प करता है, उस दिन से किसी भी प्राणी की. हिंसा न करता है, न कराता है और न करनेवाले का अनुमोदन ही करता है। भाव और द्रव्य के आधार पर अहिंसा के चार विकल्प इस प्रकार बन सकते हैं - १. भाव अहिंसा और द्रव्य अहिंसा-कोई व्यक्ति मन में संकल्प करता है कि वह स्थूल प्राणी की हिंसा नहीं करेगा और सचमुच वह ऐसा ही करता भी है तो ऐसी अहिंसा भावरूप तथा द्रव्यरूप दोनों ही हुई। ___ . भाव अहिंसा किन्तु द्रव्य अहिंसा नहीं-एक मुनि किसी भी प्राणी की हिंसा न करने का संकल्प करके यत्नपूर्वक अपनी राह पर चार हाथ भूमि देखते हुए चलता है, फिर भी बहुत से जीवों का अनजाने घात हो जाता है । अतः यहाँ पर भाव अहिंसा तो हुई किन्तु द्रव्य अहिंसा नहीं हुई। ३. भाव अहिंसा नहीं परन्तु द्रव्य अहिंसा-मछुआ मछली मारने के उद्देश्य से नदी किनारे जाल फैलाये हुए बैठा रहता है, किन्तु संयोगवश कभी-कभी वह एक भी मछली नहीं पकड़ पाता है। अतः यहाँ पर भाव अहिंसा तो नहीं है किन्तु द्रव्य अहिसा है।। ४. न भाव अहिंसा और न द्रव्य अहिंसा-मांसादि के लोभ में पड़ा हुआ आदमी जब मृग आदि जीवों को मारता है तो उसके द्वारा न भाव अहिंसा होती है और न द्रव्य अहिंसा हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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