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जैन धर्म में हिंसा
सोअरिअ - शोकरिक - सूअर का शिकार करनेवाला; मच्छबंध - मत्स्यबंध - मछलियों को मारनेवाला; साउणि— शाकुनिक- पक्षियों को मारनेवाला; वाह-व्याध - मृगादि का शिकार करनेवाला; कूरकम्मा - कूरकर्मा - कूरकर्म करनेवाला; सर - दह-दी हिय-सलिला - सयसोसग - सरोवर, झील, पोखर, तालाब और तलैया के पानी को बाहर निकालकर उनके जीवों को मर्दन करनेवाला; विसगरस्सदाय - अन्नादि में विष मिलाकर देनेवाला; जिसमें तृण उगे हुए हों ऐसे खेत में निर्दयता के साथ आग लगानेवाला आदि लोग हिंसक होते हैं ।
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इनके अलावा कुछ म्लेच्छ जातियाँ भी होती हैं, जो हिंसाप्रिय होती हैं -सक - शक - शक देशवासी; जवण - यवन; सबर - शबरदेशोत्पन्न भील; बब्बर - बर्बर; काय - काय - इस नाम के देश विशेष में जन्मे हुए लोग; मुरुंड - मुरण्ड - मुरण्डदेश में पैदा हुए लोग; उदउद-अनार्यों की एक जाति; भगड - भटक; तित्तिय - तित्तिक देश के लोग; पक्कणिय – पक्कणिक; कुलक्ख - कुलक्षनाम के अनायं देश के लोग ; गोड़ - गौड़ सिंहल - सिंहलद्वीप में उत्पन्न लोग;पारसपारस; कोचंध — क्रौंच ; दविल- द्राविड़ ; विल्लल - बिल्वल; पुलिंद; असेस- अशेष; डोब - डोंब; पोक्कण; गंधहारग- गन्धहारक; बहलीयबहलीक; जल्ल; रोम; मास; बउस - बकुश; मलय - मलय; चुच्चुक; चूलिय - चूलिक; कोंकण -- कोंकणक; भेय-भेद; पराहव—पह्यव; मालव; महुर; आभासिय - आभाषिक; अणक्क; चीण- चीन; ल्हासिक - लूहासिक; खस; खासिक; नेहर- निष्ठुर; महाराष्ट्र; मौष्टिक; आरब; डोविलक; कुहण; केकय; हूण; रोमक; रूरू; मरुक; चिलात देशवासी, जलचर, स्थलचर, पैरों में नख धारण करनेवाला, साँप, खेचर पक्षी, संडासी के समान चोंच वाला पक्षी, ये सभी जीवों की हिंसा करके ही अपना जीवन निर्वाह करते हैं । संज्ञी तथा असंज्ञी सभी जीवों की हिंसा करते हैं और ऐसा पापजनक कार्य करके प्रसन्न होते हैं । "
१. कयरे ते ? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउरिणय वाहा कुरकम्मा वाउरिया दीविय-बंधणप्पयोग-तप्पगल - जाल - वीरल्ल गाय सदब्भ वग्गुरा - कूड - छलिया -
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