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________________ अहिंसा-संबंधी जैन साहित्य १२१ इसके विपरीत जो नम्र, चपलता रहित, निष्कपट, विनीत, प्रियधर्मी एवं हितैषी जीव है, वह तेजो लेश्या के परिणाम को पाता है।' ___ अध्ययन छत्तीस में कहा गया है कि मिथ्या दर्शन, हिंसा तथा निदान में अनुरक्त जीव इन्हीं भावनाओं के साथ मरकर दुर्लभबोधि होते हैं और जो सम्यग्-दर्शन, अतिशुक्ल लेश्या तथा निदान रहित कार्य करने वाला होता है, वह इन भावनाओं के साथ मर कर परलोक में सुलभ-बोधि होता है । आवश्यक : ___ जैन आगम के मूलसूत्रों में आवश्यक सूत्र का भी स्थान है। इसमें नित्य कर्मों का प्रतिपादन करने वाले छः आवश्यक क्रियानुष्ठानों के विवेचन हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदन, प्रति. क्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । यही छः इसके अध्याय हैं। चूंकि ये छः क्रियानुष्ठान आवश्यक समझे गये हैं, इस ग्रन्थ का नाम भी आवश्यक सूत्र रखा गया है। इस ग्रन्थ में यह बताया गया है कि किस प्रकार व्यक्ति दिनभर के किए पापों को दिन के अन्त में और रात में किए हुए पापों को रात के अन्त में स्मरण कर दुःख प्रकट करता है और सभी जीवों से क्षमा मांगकर फिर आगे उन पापों को न दुहराने की प्रतिज्ञा करता है । आवश्यक सूत्र का प्रथम अध्याय सामायिक है। 'राग-द्वेष रहित समभाव को सामायिक कहते हैं । 3 १. सूत्र २७, २८. २. मिच्छादसणरत्ता सणियाणा हु हिंसगा। इय जे मरंति जीवा तेसिं पुरण दुल्लहा बोही ॥२५८॥ सम्मइंसणरत्ता अणियारणा सुक्कलेसमोगाढा । इय जे मरंति जीवा तेसिं सुलहा भवे बोही ॥२५६।। ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग २, डा. जगदीशचन्द्र जैन व डा० मोहनलाल मेहता, पृष्ठ १७४. मावश्यकसूत्र-हि० अनु० अमोलक ऋषि, पृष्ठ ७-६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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