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________________ अहिंसा-संबंधी जैन साहित्य किस प्रकार यह किया जाता है और ऐसे कौन-से लोग हैं, जो हिंसा करते हैं आदि बातें बतलाई जायेंगी।' अतएव वे कहते हैं कि ज्ञानविमुख लोग पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय तथा त्रसकाय जीवों को विभिन्न प्रयोजनों के निमित्त मारते हैं और साथ ही वे उन जीवों के नाम भी प्रस्तुत करते हैं । शक, यवन, शबर-भील, बर्बर आदि अनार्य जातियाँ हैं जो म्लेच्छ देश में रहती हैं तथा हिंसादि करकर्मों के करने में प्रसन्न होती हैं और बाद में वे महादुःखदायी नरक का वर्णन करते हैं जिसमें हिंसा करने वाले लोग अनेक वर्षों तक कष्ट भोगते हैं और जन्म-मरण के चक्र में घूमते रहते हैं। इसके षष्ठ अध्ययन अथवा प्रथम संवरद्वार में निर्वाण, निवृत्ति, समाधि आदि अहिंसा के साठ पर्यायवाची नाम बताए गए हैं। फिर यह भी निर्देशित किया गया है कि किस प्रकार उन व्यक्तियों को प्रवत्ति करनी चाहिए, जो अहिंसा-व्रत का पालन करना चाहते हैं । अतः अहिंसा की पाँच भावनाओं को प्रस्तुत किया गया है, जिनके अनुसार आचरण करने से अहिंसा व्रत का पूर्णरूपेण पालन होता है। निरयावलिका : इस उपांग में दस अध्ययन हैं, जिनमें श्रेणिक राजा तथा उनकी रानी चेलना तथा पुत्रों-काल, सुकाल, महाकाल एवं कुणिक की कथा प्रस्तुत करके यह बताया गया है कि युद्ध में हिंसा करने वाले मारे जाने पर नरक में जाते हैं। इसके प्रथम अध्ययन में दिखाया गया है कि राजकुमार काल अपने ज्येष्ठ भ्राता कणिक से युद्ध करता हआ मारा जाता है और इसके परिणामस्वरूप वह चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नामक नरक में दस सागरोपम स्थिति में पैदा होता १. जारिसो जं णामा, जह य को जारिसं फलं देह। जे वि य करेंति पावा, पाणावहं तं णिसामेह ॥३॥ २. प्रश्नव्याकरण सूत्र-हि० अनुवाद पं० घेवरचन्द्र बांठिया, पृष्ठ १५७.१५८. ३, वही, १६६-१७७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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