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________________ पहिंसा-संबंधी जन साहित्य १११ द्वादश एवं त्रयोदश अध्ययन में बताया गया है कि तत्वरी पुरुष छोटे-बड़े सभी प्राणियों को समान समझते हैं तथा किसी को दण्ड नहीं देते।' ___ चतुर्दश अध्ययन में फिर से साधु के प्रति उपदेश घोषित करते हए कहा गया है कि वह मन, वचन और काय से सबकी रक्षा करे, इतना ही नहीं साध ऐसी कोई बात भी न बोले जो दुःखदायी हो यद्यपि वह सत्य ही क्यों न हो । यदि साध किसी सिद्धान्त की व्याख्या करता है तो उस समय किसी बात को छपाये नहीं, गुरु से जैसा ज्ञान प्राप्त हो ठीक वैसा ही ज्ञान दान करे वरना ये सभी पाप के कारण हैं और साधु को पाप का भागी बना सकते हैं। उपासक दशांग : ___ इसमें दस अध्ययन हैं जिनमें क्रमश: आनन्द, कामदेव, चुलनीप्रिय, सुरादेव, चुल्लशतक, कुडकोलिक, सद्दालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीप्रिय और शालिनीप्रिय इन दस उपासकों की कथाएं हैं। इन कथानकों में यह बताया गया है कि किस प्रकार अनेकों विघ्नबाधाओं के आने पर भी ये साधक अपनी साधना में लीन रहे और सफलता प्राप्त की। सभी अध्ययनों में प्रथम अध्ययन काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें श्रावक के व्रतों के वर्णन हैं। श्रावक के बारह व्रत होते हैं- १. अहिंसा, २. सत्य, ३. अस्तेय, ४ स्वदारसंतोष, ५. परिग्रहपरिमाण, ६. दिशापरिमाण. ७. उपभोग-परिभोगपरिमाण, ८. अनर्थदण्डविरमण, ६. सामायिक, १०. देशावकाशिक, ११. पौषधोपवास तथा १२. अतिथिसंविभाग । ये व्रत 'आनन्द गाथापति के द्वारा भगवान महावीर के सामने एक-एक करके धारण किये गये हैं और इसी क्रम से इनके वर्णन हैं। इसके अष्टम अध्ययन में शावक महाशतक की पत्नी रेवती की मांस-मदिरालोलुपता तथा उसके परिणामस्वरूप उसके नरक में जाने और विभिन्न प्रकार की व्यथा भोगने का वर्णन है। साथ ही यह भी १. सूत्र १८. २. सूत्र १६, २१, २६. ३. सूत्र २३६-२५३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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