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जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय : एक अनुशीलन
निश्चयनय और व्यवहारनय परस्परसापेक्ष हैं ।
निश्चयनय से आत्मा की स्वाभाविक अवस्था का ज्ञान होता है, व्यवहारनय से संसारावस्था का ।
निश्चयमोक्षमार्ग मोक्ष का साधक है, व्यवहारमोक्षमार्ग निश्चयमोक्षमार्ग
का ।
व्यवहारमोक्षमार्ग अशुभरागरूपी रोग की ओषधि है, निश्चयमोक्षमार्ग शुभरागरूपी रोग की ।
निम्नभूमिका में निश्चयमोक्षमार्ग का अवलम्बन सम्भव नहीं है, उच्चभूमिका में व्यवहारमोक्षमार्ग का अवलम्बन अनावश्यक है।
सम्यक्त्वपूर्वक शुभोपयोग से मुख्यतः पुण्यबन्ध होता है और परम्परया मोक्ष । सम्यक्त्वरहित शुभोपयोग से मात्र पुण्यबन्ध होता है ।
निश्चयनय को छोड़ देने से आत्मादि पदार्थों के मौलिक स्वरूप का बोध नहीं हो सकता, व्यवहारनय को छोड़ देने से मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति सम्भव नहीं है ।
इसलिए दोनों नयों का परस्परसापेक्षभाव से अनुसरण करने पर ही मोक्ष का प्रयत्न सफल होता है ।
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