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________________ व्यवहारनय के भेद / १३५ एवं प्रयोजन को हृदयंगम करनेवाली दृष्टि उपचरित असद्भूतव्यवहारनय शब्द से अभिहित की गयी है। आचार्य देवसेन के निम्नलिखित वचन से यह बात स्पष्ट होती है - “संश्लेषरहितवस्तुसम्बन्धविषय उपचरितासद्भूतव्यवहारो यथा देवदत्तस्य धनमिति। ___- 'यह देवदत्त का धन है', इस प्रकार जीव से असंश्लिष्ट वस्तु के साथ जीव के स्वस्वामित्वादिसम्बन्ध का उपचार करने वाली दृष्टि उपचरित असद्भूतव्यवहारनय है। यहाँ संश्लेषरहित पदार्थ के साथ पहले संश्लेषसम्बन्ध का उपचार किया जाता है, तत्पश्चात् स्व-स्वामित्वादि सम्बन्ध का। इसलिए उपचार में उपचार करने के कारण इस दृष्टि को उपचरित असद्भूतव्यवहारनय नाम दिया गया है। (ख) सद्भूतव्यवहारनय के भेद आलापपद्धतिकार आचार्य देवसेन ने इसके भी दो भेद दिखलाये हैं : उपचरित और अनुपचरित।' इन्हें क्रमश: अशुद्ध और शुद्ध भी कहा गया है। सोपाधि-गुणी ( द्रव्य ) और सोपाधि-गुण में जो संज्ञादि का भेद होता है उसका अवलम्बन कर उन्हें भिन्न पदार्थों की तरह व्यवहृत करनेवाली दृष्टि उपचरित या अशुद्ध सद्भतव्यवहारनय कहलाती है। जैसे जीव के ‘मतिज्ञानादिगुण' इस कथन में कर्मोपाधियुक्त अशुद्ध जीव तथा उसके मतिज्ञानादि अशुद्ध गुणों में रहनेवाले संज्ञादि भेद को लेकर उन्हें स्वस्वामिरूप से भिन्न पदार्थों की तरह व्यवहत किया गया है, अत: यह उपचरित सद्भूतव्यवहारनय से किये गए परामर्श का उदाहरण है। अशुद्धपर्याय और अशुद्धपर्यायी ( द्रव्य ) का संज्ञादिभेद भी इस नय का विषय तथा जो दृष्टि निरुपाधिक गुणी और निरुपाधिक गुण के संज्ञादिगत भेद का अवलम्बन कर उन्हें भिन्न पदार्थों की तरह व्यवहृत करती है उसे अनुपचरित ( शुद्ध ) सद्भूतव्यवहारनय नाम दिया गया है। जैसे 'जीव के केवलज्ञानादि गण' १. आलापपद्धति/सूत्र २२७ २. “तत्र सद्भूतव्यवहारो द्विविध उपचरितानुपचरितभेदात् ।” वही/सूत्र २२३ ३. “तत्र सोपाधिगुणगुणिनोर्भेदविषय: उपचरितसद्भूतव्यवहारो, यथा जीवस्य मतिज्ञानादयो गुणाः।" वही/सूत्र २२४ ४. “अशुद्धसद्भूतव्यवहारो यथाऽशुद्धगुणाऽशुद्धगुणिनोरशुद्धपर्यायाशुद्धपर्यायिणोर्भेद कथनम्।” वही/सूत्र ८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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