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सद्भूतव्यवहारनय / ११७
घटित होते हैं, भिन्न वस्तुओं में नहीं। किन्तु अद्वैत आत्मा में कर्ताकर्मादिरूप द्वैत वस्तुभेद पर आश्रित न होकर संज्ञादिभेद पर आश्रित है, इस अपेक्षा से निश्चयनय से सत्य नहीं है, अपितु संज्ञादिभेदावलम्बी सद्भूतव्यवहारनय से सत्य है।
___ अभेद में भी स्वस्वामित्वादिव्यपदेश की उपपत्ति
नैयायिकों का मत है कि यदि द्रव्य और गुणों में एकान्ततः ( वस्तुरूप से ) भेद न हो, तो उनमें 'यह इस द्रव्य का गुण है' ऐसा षष्ठीव्यपदेश ( स्वस्वामिभावकथन ) अथवा 'मिट्टी अपने घटपरिणाम को उत्पन्न करती है' ऐसा कर्ताकर्मादि-कारकव्यपदेश घटित नहीं हो सकता। अत: द्रव्य और गुण संज्ञादिरूप से नहीं, अपितु वस्तुरूप से भिन्न हैं। किन्तु जिनेन्द्रदेव का कथन है कि संज्ञादि का भेद होने पर भी व्यपदेशादि घटित होते हैं। जैसे 'देवदत्त की गाय' इस वाक्यांश में भिन्न वस्तुओं में स्वस्वामिभाव का कथन है वैसे ही 'वृक्ष की शाखाएँ', 'द्रव्य के गुण' इन उक्तियों में एक ही वस्तु में संज्ञादि भेद के आधार पर स्वस्वामिभाव का निर्देश किया गया है। जैसे 'देवदत्त, धनदत्त के लिए बगीचे में अंकुश के द्वारा वृक्ष से फल तोड़ता हैं' यहाँ भिन्न वस्तुओं में षट्कारक-प्रयोग हुआ है, वैसे ही 'मिट्टी स्वयं, स्वयं के द्वारा, स्वयं के लिए, स्वयं में से, स्वयं में घटपर्याय उत्पन्न करती है' यहाँ एक ही वस्तु में संज्ञादिभेद के आश्रय से षट्कारक प्रयुक्त हुए हैं। इसी प्रकार ‘आत्मा आत्मा को, आत्मा के द्वारा, आत्मा के लिए, आत्मा से आत्मा में जानता है', यहाँ भी एक ही वस्तु में षट्कारकों का व्यवहार हुआ है। जैसे 'एक देवदत्त की दस गायें' यहाँ भिन्न वस्तुओं में संख्या-भेद किया गया है, वैसे ही 'एक वृक्ष की दस शाखाएँ' अथवा 'एक द्रव्य में अनन्त गुण' यहाँ एक ही वस्तु में संख्यात्मक भेद दर्शाया गया है। जैसे ‘गोशाला में गायें' यहाँ भिन्न पदार्थों में आधाराधेयभाव का कथन है वैसे ही 'वृक्ष में शाखाएँ' अथवा 'द्रव्य में गुण' यहाँ एक ही वस्तु में आधाराधेयसम्बन्ध बतलाया गया है। जैसे 'लम्बे देवदत्त की लम्बी गाय' इस वचन में भिन्न वस्तुओं में संस्थानभेद का वर्णन है वैसे ही 'ऊँचे वृक्ष की ऊँची शाखाएँ' अथवा 'मूर्त द्रव्य के मूर्त गुण' यहाँ एक ही वस्तु में संस्थानभेद वर्णित है। अतः षष्ठी आदि व्यपदेश द्रव्य और गुणों में वस्तुरूप से भेद सिद्ध नहीं करते। १. “निश्चयेन यदि वस्तु चिन्त्यते कर्तृ कर्म च सदैकमिष्यते।” समयसार/कलश २१० २. "नैयायिकाः किल वदन्ति द्रव्यगुणानां यद्येकान्तेन भेदो नास्ति तर्हि व्यपदेशादयो न घटन्ते। तत्रोत्तरमाहुः -द्रव्यगुणानां कथञ्चिद्भेदे तथैवाभेदेऽपि व्यपदेशादयः सन्तीति।"
पञ्चास्तिकाय/तात्पर्यवृत्ति/गाथा ४६ ३. वही/तत्त्वदीपिका/गाथा ४६
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