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________________ जन-जन वल्लभ आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरीश्वर -- मानव-सभ्यता के आदिकाल से ही भारत विश्व का आध्यात्मिक गुरु रहा है। इसे देवभूमि, ऋषिभूमि, धर्मधरा आदि के नाम से याद किया जाता रहा है। पाश्चात्य विद्वान् मैक्समूलर का मत था कि भारतीय शिशु को आध्यात्मिकता वंशपरम्परा से प्राप्त है। उपनिषदों में उल्लेख है कि जब ऋषि याज्ञवल्क्य अपनी सांसारिक संपत्ति का बँटवारा अपनी दो पत्नियों में करने लगे तो मैत्रेयी ने कहा, "मैं उस संपत्ति को लेकर क्या करूंगी जिससे अमृतत्व की प्राप्ति नहीं होती।' आत्मजिज्ञासु बालक नचिकेता ने यमराज द्वारा दिए जानेवाले भौतिक वरदानों को ठुकरा कर कहा था कि मुझे तो आत्मविद्या दोजिए। प्रागैतिहासिक काल से प्रवाहित हुई सन्तों और महात्माओं की यह परंपरा इस देवभूमि भारत में अभी भी अक्षुण्ण है। . इसी शृंखला को एक कड़ी हैं ज्ञान-भास्कर, कलिकाल कल्पतह, भारतदिवाकर, पंजाबकेसरी, युगवीर जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वर जी महाराज; जिन्होंने प्रातःस्मरणीय, न्यायाम्भोनिधि, नवयुग-प्रवर्तक जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद् विजयानंद सूरि जी ( प्रसिद्ध नाम श्री आत्माराम जी) के पट्टालंकार बनकर उनके मिशन की पूर्ति के लिए सर्वस्व को बाजी लगा दी थी। चरित्रनायक श्री विजयवल्लभ जी ने जिनधर्म-प्रचार, शिक्षा-प्रसार, जिनमन्दिरोद्धार, साहित्य प्रकाशन, साहित्य संकलन, मध्यमवर्ग उत्कर्ष, जैन एकता, राष्ट्र निर्माण आदि के ऐसे अनेक कार्य किए जो इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में सुदीर्घकाल तक अंकित रहेंगे। ____ जीवन रेखा : हमारे चरित्र नायक का जन्म कार्तिक शुक्ला द्वितीया ( भाईदूज ) वि० सं० १९२७ के दिन बड़ौदा में हुआ था । बाल्यावस्था का नाम छगनलाल था। धर्ममना पूज्य पिताश्री दीपचंद का निधन उस समय हो गया जब बालक मात्र ९ वर्ष का था। कुछ समय पश्चात् महायात्रार्थ प्रस्थान करती हुई पूज्या माता से बालक छगनलाल ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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