________________
७. प्राकृतिक चिकित्सा शोध कार्य ८. जैन साहित्य और शोध साहित्य का प्रकाशन ९. पुरातन साहित्य का पुनःप्रकाशन १०. नारी शिल्प केन्द्र ११. चलता फिरता औषधालय । भवन की रूपरेखा , श्री आत्मवल्लभ संस्कृति मन्दिर के अन्तर्गत बननेवाले भवन आदि की रूपरेखा सामान्यतः इस प्रकार है
कलात्मक प्रवेश द्वार से लगभग ३०० फीट अन्दर, ८४ फीट ऊँचा पुरातन जैन कला के अनुरूप एक भव्य प्रासाद निर्मित होगा। भवन की Plinth ( स्तम्भपीठ ) सड़क से १३' फीट ऊँची होगी। इसके बीच में ६ फीट दीर्घा से घिरा हआ ६३ फीट व्यास का रंगमंडप बनेगा। सीढ़ियों पर श्रृंगार चौकियां तथा ऊपर साभरण इसे सुशोभित करेंगे। पीछे स्थित शोध ब्लाक में प्राकृतिक चिकित्सा पर शोध कार्य, शिवाविद्, प्रबन्धकों तथा पर्यटकों के निवास का प्राविधान है। समूचे भवन के नीचे भूतलघर (बेसमेन्ट ) में पुस्तकालय, विद्यापीठ, संग्रहालय तथा प्रकाशन विभाग होगा। प्रवेशद्वार से भवन तक पहुंचने का रास्ता फूलवारियों तथा फव्वारों से युक्त होगा। पक्के रास्ते के मध्य क्वचित् छोटी-छोटी सीढ़ियाँ होंगो जिससे दर्शनार्थी सहज में १३ फुट को चौकी तक पहुंच सकेगा । सार्वजनिक सभाओं के लिए पीछे खुला प्रांगण होगा। पर्यटकों के लिए जलपान गृह की भी व्यवस्था होगी।
निर्माणाधीन स्मारक का नाम 'आत्मवल्लभ संस्कृति मन्दिर' रखा गया है। स्मारक भवन के निर्माण में पाँच-सात वर्ष का समय अपेक्षित है। व्यय का अनुमान एक करोड़ है, सम्भव है परिस्थितिवश इससे भी अधिक हो। आज तक पू० महत्तरा साध्वी श्री मृगावतीजी महाराज की ओजस्वी प्रेरणा से ५५ लाख की धनराशि के वचन मिले हैं। प्रबन्धकों की अभिलाषा है और प्रयास है कि जहाँ स्मारक भवन भारतीय ओर जैन स्थापत्य कला का अतीव सुन्दर भव्य और आकर्षक प्रतीक हो वहाँ साहित्यिक, अनुसंधान, अध्ययन, प्रकाशन आदि प्रवृत्तियों का प्रमुख केन्द्र हो। हम चाहते हैं कि देश विदेश के जिज्ञासु यहाँ से लाभान्वित हों और यह परम पावन स्मारक स्वाध्याय, योग, ध्यान और साधना का प्रेरणा केन्द्र बने।
-राजकुमार जैन, मन्त्री
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org