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________________ (ङ) उनकी पीयूषवाणी का पान कर पं० मोतीलाल नेहरू ने धूम्रपान का त्याग कर दिया था । सशिक्षा के प्रचार को उन्होंने राष्ट्रनिर्माण का प्रमुख अङ्ग माना था। जैन समाज में शिक्षा प्रचार पर बल देनेवाले सन्तों में गुरुवल्लभ का नाम सर्वोपरि है । समाज का उत्कर्ष - श्रीमद् विजयानन्द सूरि तथा श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जैन इतिहास में इस दृष्टि से सम्भवतः अनुपम स्थान रखते हैं कि उन्होंने आत्मसाधना के साथ-साथ श्रावक, श्राविका रूपी तीर्थ की प्रगति और कल्याण की ओर भी पूरा-पूरा ध्यान दिया । 'न धर्मो धार्मिके : विना' का आदर्श शास्त्रों में सीमित था । उसे मूर्त रूप प्रदान करने के भागीरथ प्रयास का श्रेय गुरुवल्लभ को है । वे मानते थे कि समाज और संघ के उत्थान के लिए कोई भी आवश्यक और विवेकपूर्ण प्रवृत्ति उतनी ही मूल्यवती है जितनी कि सच्चे त्याग की क्रिया । फलतः उन्होंने समाज सुधार और मध्यमवर्ग के उत्कर्ष के लिए भी आत्मानन्द जैन महासभा की स्थापना करवाई, जैन कांफेन्स बम्बई की प्रवृत्तियों को प्रेरणा दी, अनेक उद्योगशालाएँ खुलवाई, सहधर्मीवात्सल्य का वास्तविक अर्थ स्पष्ट करते हुए बताया कि इसका तात्पर्य केवल प्रीतिभोज नहीं, साधर्मी भाई को स्वाश्रयी बनाना है । संक्षेप में कहा जा सकता है कि गुरुवर श्रीविजयवल्लभ सूरीश्वर जहाँ आदर्श त्यागी, संयमी, मधुर प्रभावशाली वक्ता, धर्म और दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान् तथा जैन शासन के उत्रायक थे, वहाँ जैन समाज के उत्थान के लिए एक मसीहा और राष्ट्रनिर्माण की प्रवृत्तियों के मूक प्रेरक भी । उनकी जीवन-ज्योति हमारे लिए प्रकाश स्तम्भ का काम देती रहेगी । जैन समाज उनकी पुनीत स्मृति में भारत की राजधानी दिल्ली में भव्य स्मारक का निर्माण कर अपने पुनीत कर्तव्य का पालन कर रहा है । उसकी पूर्ति जैन शासन की अनूठी सेवा होगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रो० पृथ्वीराज जैन एम० ए०, शास्त्री www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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