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१४५-१४६, रूपक —– १४६, समासोक्ति - १४७, निदर्शना - १४७-१४८, अति-शयोक्ति - १४८ - १४९ दृष्टान्त -- १४९- १५०, तुल्ययोगिता - १५०-१५१, व्यतिरेक - १५१, विशेषोक्ति - १५२, यथासंख्य - १५२, अर्थान्तर न्यास - १५३-१५५, स्वभावोक्ति - १५५ - १५६, सहोक्ति - १५६, भाविक - १५७, काव्यलिंग – १५७ - १५८, उदात्त - १५८, समुच्चय--१५९, पर्याय -- १५९-१६०, अनुमान - १६० १६१, परिकर - १६१, सम-- १६१ - १६२, स्मरण – १६२ - १६३, विषम - १६३, अपहनुति - १६३-१६४, अप्रस्तुत प्रशंसा – १६४-१६५, दीपक – १६५, आक्षेप - १६५ - १६६, विभावना - १६६-१६७, विरोध -- १६७, व्याजस्तुति - १६८, पर्यायोक्त -- १६८ - १६९, समाधि - १६९-१७०, प्रत्यनीक - १७०-१७१, सामान्य - १७१, विशेष - १७१-१७२, हेतु - १७२, जाति१७३, भाव - १७३ १७४ अवसर - १७४- १७५, अतिशय - १७५, निषेध - १७५-१७६, संसृष्टि - १७६-१७७ संकर - १७७ - १७८, अलंकार समीक्षण - १७९-१८४ । दोष-विमर्श
१८५-१९९.
दोष : सामान्य परिचय - - १८५ १८७, जैनमेघदूतम् में दोष – १८७ - १८८, अयुक्तिमद् दोष -- १८८-१९०, च्युतसंस्कृति दोष - १९० - १९२, हीनोपमादोष - १९२-१९३, अधिकोपमा दोष – १९३-१९४, नवीन एवं गूढ़ शब्द प्रयोग दोष-१९४-१९६, अप्रसिद्ध प्रयोग दोष - १९६-१९७, दोष समीक्षण - १९७-१९९ ॥ २००-२१४
गुण-विमर्श
गुण : सामान्य परिचय - - - २०० २०३, जैनमेघदूतम् में गुण -- २०३-२११,. गुणसमीक्षण -- २१२-२१४ ।
छन्द-विमर्श
२१५-२२१
छन्द : सामान्य परिचय -- २१५-२१६, जैनमेघदूतम् में छन्द -- २१६-२२०, छन्द समीक्षण -- २२०-२२१ ।
उपसंहार
मूलवृत्ति एवं हिन्दी अनुवाद सहायक ग्रन्थ सूची
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२२२-२२६
१-१२५ १२७-१३५.
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