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________________ प्रकाशकीय इतिहास किसी जाति, क्षेत्र, धर्म, राज्य आदि की गतिविधियों का चित्रण या गौरव-गाथा ही नहीं है, वह आज के समाज की नींव भी है। भारतीय मनीषा ने इस महत्त्वपूर्ण तथ्य को सम्यक प्रकार से पहचाना था। इस बात के साक्ष्य हमें भारत के प्राचीन वाङ्मय में बिखरे मिलते हैं। जैनों के इतिहास-लेखन की परम्परा प्राचीन है। परन्तु, उसमें भी वैदिक व अन्य परम्पराओं की भांति चमत्कार व अलौकिकता घुल-मिल गई थी। तथापि 'खरतरगच्छालंकार वृहद्-गुर्वावली, कुमारपाल चरित्र, प्रबन्ध चिन्तामणि, विविध तीर्थकल्प, प्रभावक-चरित्र, पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह' आदि अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं जो विशुद्ध ऐतिहासिक सूचनाओं के भण्डार हैं। आवश्यकता है उनमें से तथ्य और अतिशयोक्तियों को पृथक् करने की तथा बिखरे हुए साक्ष्यों को एकत्र कर सत्य को पुष्ट करने की। "प्रबन्धकोश" ऐसा ही एक ग्रन्थ है जो तथ्यात्मक अधिक है और अतिशयोक्तिपूर्ण कम। डॉ० प्रवेश भारद्वाज ने इसका शोधपूर्ण विवेचन प्रस्तुत करने की पहल की है। यह प्रयत्न प्रशंसनीय और अनुकरणीय है। हमें यह पुस्तक प्राकृत भारती पुष्प - ९५ के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है। हमें आशा है कि यह पुस्तक सामान्य पाठकों के लिये ऐतिहासिक सूचनाओं का स्रोत होगी और शोधार्थियों के लिए प्रेरणा का। हम डॉ. भारद्वाज को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने इस शोध की ओर श्लाघनीय प्रयत्न किया। बरिष्ठ मनीषी डॉ० सागरमल जी जैन ने अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच इस पाण्डुलिपि का अवलोकन कर वैदुष्यपूर्ण भूमिका लिखकर इस पुस्तक का महत्त्व बढ़ाया है। साथ ही इसका मुद्रण-कार्य भी स्वयं के निर्देशन में करवाया है, अतः हम उनके प्रति आभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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