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________________ हमारी भारतीय परम्परा में अनेक ज्ञानी - ध्यानी हुए जिन्होंने अपनी शक्ति और अनुभूति के द्वारा विश्व को बहुत कुछ दिया। जैसे - महर्षि पतंजलि, वेदव्यास, गोरखनाथ, हरिभद्र, नागार्जुन, सरहप्पा, कण्हप्पा, शुभचन्द्र, हेमचन्द्र, योगीन्दु, आनन्दघन आदि के नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिये जाते हैं। इन महापुरुषों के द्वारा रचित साहित्य भारतीय वाङ्मय की अमूल्य निधि है, जिसमें इन आचार्यों की अनुभूतियाँ समाहित हैं। जिस प्रकार साहित्य अपने आप में असाम्प्रदायिक होता है उसी तरह योग भी असाम्प्रदायिक है। आज भी योग साम्प्रदायिक संकीर्णता से अछूता है । यद्यपि हम उसे वैदिक योग, जैन योग, बौद्ध योग आदि नामों से सम्बोधित कर साम्प्रदायिकता की डोरी में बाँध देते हैं, किन्तु योग असाम्प्रदायिक है। साम्प्रदायिक इस संदर्भ में दृष्टिगोचर होता है कि सबकी अपनी-अपनी साधना-पद्धत्ति है जिसके विधिक्रम में विविधता हो सकती है, किन्तु साम्प्रदायिकता नहीं। विधिक्रम की विविधता ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार नगर के विभिन्न मार्ग नगर मुख्यालय की ओर जाते हैं। इसी प्रकार योग-विधियाँ अलग-अलग है, किन्तु सबका लक्ष्य एक ही है- मोक्ष। योग एक ओर जहाँ पारलौकिक सुखों की उपलब्धि कराता है वहीं वह मानव को लौकिक उपलब्धियाँ प्रदान करने में भी सहायक का कार्य करता है । चित्त की वृत्तियों को संतुलित करना ही इसका प्रधान कार्य है। आज का मानव जीवन असंतुलित - सा हो गया है। इस भौतिकवादी युग में मानव की मानसिक अशान्तियाँ बढ़ती जा रही हैं। इसका प्रमुख कारण है - जीवन में एकाग्रता, स्थिरता एवं तन्मयता का अभाव, जिसके फलस्वरूप वह अपने लक्ष्य से विमुख ही जाता है। ऐसी स्थिति में मन, वचन और कर्म में एकरूपता, एकाग्रता, तन्मयता और स्थिरता लाना अत्यावश्यक है, जो एक मात्र योग-साधना के द्वारा ही सम्भव है । यही कारण है कि योग आज भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि प्राचीनकाल में था । इसीलिए योग का अध्ययन आज भी समीचीन है। योग साधना में शारीरिक विकृतियों और मानसिक तनावों को समाप्त करने की जो शक्ति छिपी हुई है, जिससे भोगवादी और मानसिक तनावों से संत्रस्त लोग चैतसिक शान्ति का अनुभव करते हैं, उसी शक्ति के कारण आज लोगों में योगसाधना के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। जैन एवं बौद्ध योग पर अनेक पुस्तकों का प्रणयन हुआ है। पण्डित सुखलाल जी की 'समदर्शी हरिभद्र', विलियम जेम्स की 'जैन योग', आचार्य महाप्रज्ञ की 'जैन योग', ‘चेतना का उर्ध्वारोहण’, ‘आभामण्डल', पद्मनाभ जैनी की 'जैन पॉथ ऑफ प्यूरिफिकेशन', अर्हत्दास बंडोवा दिगे की 'जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन' आदि कृत्तियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। बौद्ध धर्म-दर्शन में डॉ० भरत सिंह उपाध्याय की ‘ध्यान-सम्प्रदाय’, डॉ० डोडमगोड रेवत थेरो की 'थेरवाद बौद्ध धर्म में योग और साधना', विज्ञानभिक्षु की 'प्रज्ञा के प्रकाश में सम्यक्-दृष्टि', भिक्षु सुगमतानन्द की 'विपश्यना-पद्धति' आदि महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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