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________________ ग्लान की सेवा प्रभु की सेवा है -भगवान महावीर और गौतम गणधर का संवाद"कि भंते ! जो गिलाणं पडियरइ से धण्णे उदाहु जे तुमं दंसणेण पडिवज्जइ? गोयम ! जे गिलाणं पडियरइ। से केरण?णं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयम ! जे गिलाणं पडियरइ से मं दंसणेण पडिवज्जइ। जे मं दसणेण पडिवज्जइसे गिलाणं पडियरइ त्ति / प्रारणाकरण-सारं ख अरहंताणं दसणं। गोयमा ! एवं वुच्चइ-"जे गिलाणं पडियरइ से मं पडिवज्जइ जे मं पडिवज्जइ से गिलाणं पडिवज्जइ।" -आवश्यकसूत्र हारिभद्रीया टीका पत्र-६६१-६६२ (अागमोदय समिति, सूरत, सन् 1917) "भगवन् ! जो ग्लान की सेवा करता है वह धन्य है अथवा आपकी सेवा करता है वह धन्य है ? गौतम ! जो ग्लान की सेवा करता है वह धन्य है। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं। गौतम ! जो ग्लान की सेवा करता है, वह मेरी सेवा करता है। जो मेरी सेवा करता है वह ग्लान की सेवा करता है। यही अरिहन्तों की आज्ञा पालन का सार है। इसीलिये हे गौतम ! मैं कहता हूं कि जो ग्लान की सेवा करता है वह मेरी सेवा/उपासना करता है। जो मेरी सेवा करता है वह ग्लान की सेवा करता है / अतः सेवाकारक धन्य है।" Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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