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________________ (य) संत-वचन (1) अहिंसा माने अपने भाषण से या कृति से किसी का भी दिल न दुःखाना, किसी का अनिष्ट तक न सोचना। -विवेकानन्द (2) अहिंसा धर्म का तकाजा है कि हम दूसरों को अधिक से अधिक सुविधाएँ प्राप्त करा देने के लिये स्वयं अधिक से अधिक असुविधाएँ सहें-यहाँ तक कि अपनी जान भी जोखिम में डाल -~-गांधी (3) जरूरतमन्द के साथ अपनी रोटी बाँटकर खाना और हिंसा से दूर रहना, यह सब पैगम्बरों के तमाम उपदेशों में श्रेष्ठतम उपदेश है। -तिरुवल्लुवर (4) नेक रास्ता कौन-सा है ? वही जिसमें इस बात का ख्याल रखा जाता है कि छोटे-से-छोटे जानवरों को भी मरने से किस तरह बचाया जाय। -तिरुवल्लुवर (5) अगर तुम्हारे एक लफ्ज से भी किसी को पीड़ा पहुँचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। -तिरुवल्लुवर (6) जब कोई विश्वात्मा को निजात्मा ही अनुभव करने लगता है तो सारा ब्रह्माण्ड उसकी इस तरह सेवा करता है जैसे उसका शरीर। -स्वामी रामतीर्थ (7) जो वास्तव में उदार है वही वास्तव में ज्ञानी है, और वह जो कि दूसरों से प्रेम नहीं करता, बरकतहीन जिन्दगी बसर करता है। ___~-होम (8) इस दुनिया में हम जो लेते हैं वह नहीं, बल्कि जो देते हैं वह, हमें धनवान बनाता है। -बीचर (9) दया से लबालब भरना ही सबसे बड़ी दौलत है; क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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