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सेवा के बिना अहिंसा अधूरी
[ 289 दूसरे क्या समझेंगे ? इस झिझक की भावना को मिटाना होगा। दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय संगठन से सम्बद्ध एक विदेशी व्यक्ति काम करता है । वह कुष्ठ रोगियों से हाथ मिलाकर उन्हें भोजन आदि देता है । उसे हाथ मिलाने में झिझक नहीं है। उसकी सेवा का माधार प्रेम है। उपेक्षित प्राणियों को यदि हम प्रेम दें तो बहुत बड़ा काम होगा। ___ जयपुर में क्रिस्टल रोजर्स का एक आश्रम है, जिसमें कुत्ते, बिल्ली, बन्दर प्रादि सब साथ ही रहते हैं । इस प्रकार सेवा-भावना से निर्भयता एवं प्रेम का वातावरण बनता है। मनुष्यों में ही नहीं, पशुत्रों में भी ऐसा वातावरण बनने का उदाहरण है वह आश्रम ।
सेवा किसकी की जाय ? सेवा आदमी की, पशु की, पक्षी की या किसी भी छोटे-बड़े प्राणी की की जा सकती है । सेवा की जरूरत किसको अधिक है, कौन ज्यादा कठिनाई, अभाव या दु:ख में है, उसके आधार पर प्राथमिकता निर्धारित करनी चाहिये।
आज के युग में साम्प्रदायिकता है, अनेक मतभेद हैं, किन्तु सेवा एक ऐसा भाव है जिसके कारण व्यक्ति इन सबसे परे निकल जाता है।
जैन विद्वानों में एक विचार यह चचित होता है कि सेवा या दान सुपात्र को देना चाहिए, कुपात्र को नहीं। मेरी समझ में देने वाले की भावना शुद्ध होनी चाहिए । कुपात्र एवं सुपात्र का परीक्षण प्रथम दृष्ट्या संभव नहीं है तथा यह दाता की भावना पर अंकुश भी लगाता है, जो कदापि उचित नहीं है। ___ सारांश यह है कि अहिंसा जो जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है, के दोनों ही अर्थात् नकारात्मक और सकारात्मक पहलू हैं । इस कथन का अाधार केवल भावना नहीं है, अपितु शास्त्र हैं । अहिंसा को केवल नकारात्मक कहना और करुणा, दया, अनुकम्पा, वात्सल्य, मैत्रीभाव आदि को कर्म-बन्धन का कारण बताना शास्त्रों के अनुकूल नहीं है। जैन धर्म के मर्म को नहीं समझने के कारण उपर्युक्त भ्रामक विचारघारा उत्पन्न हुई है । यदि धर्म मानव को संवेदनशीलता से विरक्त करता है और मानव को पत्थर बनाता है तो वह धर्म 'धर्म' ही नहीं कहला सकता । यह केवल लौकिक धर्म की बात नहीं है, अपितु मूल शास्त्रों पर आधारित सिद्धान्तों के अनुसार सत्य है।
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