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सकारात्मक अहिंसा
कभी आकाशीय देवों की ओर आँखें जाती हैं और कभी सरकार तथा समाज-सेवी संस्थानों पर । सहायता कार्य चल भी रहे हैं, परन्तु उक्त प्रभाव को धकेलने के लिए जब तक प्रकृति का पूरी तरह सहयोग न मिले, तब तक मनुष्य का अभीष्ट पूर्ण होना अशक्य है।
यह तो हुआ जलाभाव का एक पक्ष । दूसरी ओर बिहार, बंगाल एवं असम आदि पूर्वांचल के अनेक जन-पद जल-प्रलय से ग्रस्त हैं, अथवा त्रस्त हैं। इतना मूसलाधार पानी पड़ा है कि नदियों ने बाढ़ के रूप में वह उग्र रूप धारण कर लिया है कि कुछ कहा नहीं जा सकता । अनेक गाँव जल-प्रवाह में बह गए । हजारों मकान ध्वस्त हो गए हैं, करोड़ों रुपए की खड़ी फसल पानी में डूब कर सड़-गल गई है। जान-माल की क्षति भी भयंकर हुई है। सैंकड़ों ही मनुष्यों और पशुओं के अस्तित्व तक का पता नहीं चल पा रहा है कि उनका क्या हमा ? इसी बीच कुछ भाग्य से बचे हुए लोगों में व्याधियाँ फूट पड़ी हैं । जहाँ भूख की समस्या के हल के लिए अन्न का ही प्रभाव हो, वहाँ रोगों की चिकित्सा का प्रश्न ही कहाँ शेष रह जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि राजतन्त्र कुछ कर नहीं रहा है तथा समाज-सेवी संस्थाएँ यह सब-कुछ देखते हुए भी अांखें बन्द किए बैठी हैं। परन्तु, संगठनों की कुछ सीमाएँ भी होती है, साथ ही निष्ठा के साथ काम करने की अपेक्षाएँ भी।
वैज्ञानिक दिव्य-दृष्टि के धनी मनीषी महानुभाव भविष्य में क्या समाधान कर सकेंगे, इन प्रकृति-प्रकोपों का ? यह तो आने वाला भविष्य ही बताएगा । समस्या वर्तमान की है। मैं चाहता हूं, चाहता ही नहीं, तन-मन के कण-कण से अपेक्षा रखता हूं कि भारतीय जनता की समग्र कर्म-चेतना पूर्ण निष्ठा के साथ जन-कल्याण के पथ पर अग्रसर हो । खण्ड दृष्टि में नहीं, अखण्ड दृष्टि में समाधान है। भारत का, भारत के मनीषियों का, भारत के गुरुजनों का, चिरकाल से यह दिव्य-घोष अनुगुजित होता आ रहा है "एक व्यक्ति का दुःख-सुख उस एक व्यक्ति का ही नहीं, किन्तु हम सबका है। हर प्रात्मा सुखदुःखानुभति का एक समान केन्द्र है । अतः अपने समान ही सबको समझना धर्म है और कुछ नहीं । अहिंसा भगवती की उपासना तथा
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