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________________ सकारात्मक अहिंसा धर्म है [ 75 जैनागमों में दया, दान, वात्सल्य, मैत्री, वैयावृत्त्य (सेवा,) प्रमोद, मृदुता, ऋजुता, नम्रता आदि सद्प्रवृत्तियों को शुभ योग कहा है और शुभ योग को संवर कहा है। इन्हें संवर कहने का कारण यह है कि इनसे कर्मबंध नहीं होता, लेकिन वास्तविकता यह है कि इनसे कर्म-क्षय भी होता है। अतः ये प्रवृत्तियां संवर और निर्जरारूप हैं । संवर और निर्जरा धर्म है । उदाहरणार्थ(1) नम्रता के द्योतक नमस्कारमंत्र को ही लें। इसमें स्पष्ट कहा है कि अरिहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और साधु इन पाँचों को नमस्कार करने रूप शुभयोग या सद्प्रवृत्ति सब पापों का नाश करने वाली है, अर्थात् धर्म है क्योंकि नमस्कार रूप नम्रता से अहंभाव गलता है। अहंभाव गलने से सब कर्मों का क्षय होता है । (2) वात्सल्य को लेंवात्सल्य सम्यग्दर्शन का अंग व प्राचार है, सम्यग्दर्शन कर्म-क्षय में हेतु है, धर्म है अतः वात्सल्य धर्म है। (3) मैत्री, प्रमोद, करुणाभाव रूप सद्प्रवृत्तियों को तत्त्वार्थसूत्र में संवररूप धर्म में स्थान दिया गया है (4) आर्जव-सरलता, मार्दव-मृदुता (हृदय की कोमलता), लाघव (विनम्रता) आदि सद्प्रवृत्तियों को धर्म के दस भेदों में स्थान दिया गया है (5) अनुकम्पा को सम्यग्दर्शन का लक्षण कहा गया है। सम्यगदर्शन संवर रूप धर्म है। अतः अनुकम्पा संवर है। (6) वीतराग केवली को अनंतदानी कहा है अतः दान वीतराग धर्म का ही अंग है । सद्प्रवृत्तियों एवं शुभ योग से कर्मबन्ध नहीं होता है वरन् कर्मक्षय होता है, यह मान्यता जैन-धर्म की मौलिक मान्यता है और प्राचीन काल से परम्परा के रूप में अविच्छिन्न धारा में चली आ रही है । 'शुभयोग संवर है' यह मान्यता श्वेताम्बर सम्प्रदाय में तो आज भी ज्यों की त्यों विद्यमान है, किन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय में वर्तमान में यह सर्वमान्य नहीं रही है। आज दिगम्बर सम्प्रदाय के कुछ अनुयायी इसे माने अथवा न मानें परन्तु प्राचीन काल में तो दिगम्बर सम्प्रदाय में भी यह मान्यता सर्वमान्य ही रही है। इसके अनेक प्रमाण ख्यातिप्राप्त दिगम्बराचार्य श्री वीरसेन स्वामी रचित प्रसिद्ध धवला टीका एवं जयधवला टीका में देखे जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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