SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजय जी जैन विद्या के उज्ज्वल नक्षत्रों में से एक थे। उन्होंने अपने जीवन-काल में मुख्य रूप से सिंघी जैन ग्रन्थमाला और राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर के माध्यम से अनेक दुर्लभ ग्रन्थों का पुनरुद्धार कर उन्हें प्रकाशित कराया । मुनिश्री के जन्म शताब्दी के पुण्य अवसर पर पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान ने उनके प्रति श्रद्धाञ्जलि-स्वरूप उन्हीं के द्वारा लिखित एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और प्रामाणिक निवन्ध 'हरिभद्र का समय निर्णय' जो सन १९१९ में पूना से प्रकाशित 'जैन साहित्य संशोधक' वर्ष १, अंक १ में छपा था, पुनर्प्रकाशित करने का निर्णय किया। प्रस्तुत पुस्तक उसी निर्णय के अन्तर्गत प्रकाशित किया जा रहा है । हरिभद्रसूरि के काल-निर्णय के सम्बन्ध में यह लेख कितना महत्त्वपूर्ण है और वैदुष्य परिचायक है, यह बात जैन विद्या के अध्येताओं के लिये अपरिचित नहीं है। हरिभद्रसूरि जैन परम्परा की श्वेताम्बर शाखा के एक ऐसे आचार्य हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी से अनेक ग्रंथों को प्रसूत किया। उनके ग्रंथ संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं में उपलब्ध हैं, जो विविध विषयों पर लिखे गये हैं। ऐसे महान् आचार्य के समय निर्धारण के सम्बन्ध में मुनि जिनविजय जी ने उनके समय सम्बन्धी सभी मतों की समीक्षा करते हुए जो निर्णय प्रस्तुत किया है वह आज एक स्थिर मान्यता के रूप में स्थापित हो चुका है । इस लेख की मूल प्रति हमें एल० डी० इस्टिट्यूट, अहमदाबाद से प्राप्त हुई थी अतः हम उनके प्रति भी आभारी हैं। भूपेन्द्रनाथ जैन मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only "www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy