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________________ ( २९ ) दर्शनसमुच्चय के ११वें श्लोक में हरिभद्रसूरि बौद्धन्याय सम्मत लिंग (हेतु) के तीन रूप इस प्रकार लिखते हैं रूपाणि पक्षधर्मत्वं सपक्षे विद्यमानता । विपक्षे नास्तिता हेतोरेवं त्रीणि विभाव्यताम् ।। यह बौद्ध न्यायका सुज्ञात सिद्धान्त है, परन्तु हरिभद्र प्रयुक्त पक्षधर्मत्व पद खास ध्यान खींचने लायक है। क्योंकि न्यायशास्त्र के पुराने ग्रन्थों में यह पद दृष्टिगोचर नहीं होता । प्राचीन न्यायग्रन्थों में इस पदवाच्य भाव को दूसरे शब्दों द्वारा प्रकट किया गया है। यह पद. न्यायग्रंथों में पीछे से प्रयुक्त होने लगा है । इससे जाना जाता है कि हरिभद्रसूरि कहे जाने वाले समयसे बाद में हुए होने चाहिए। 'अष्टकप्रकरण' नामक अपने ग्रंथ के चौथे अष्टक में हरिभद्रसरिने शिवधर्मोत्तर का उल्लेख किया है । इससे भी यही बात जानी जाती है, क्योंकि अज्ञात समयका यह ग्रन्थ बहुत पुरातन हो ऐसा प्रतीत नहीं होता। शंकर की श्वेताश्वतर उपनिषद् की टीका में इस ग्रन्थ का नाम मिलता है। यदि, हरिभद्रसूरि के ग्रन्थों का ठीक-ठीक अभ्यास और उनका बराबर शोध किया जाय तो, दन्तकथा में बतलाये हुए समय से वे अर्वाचीन समय में हए थे, इसका प्रायः निर्णय हो जायेगा। ___ 'हरिभद्रसूरिके स्वर्गगमन की साल (ओ विक्रम संवत ५८५ और वीर संवत १०५५ है) १६वीं शक शताब्दीसे प्राचीन नहीं ऐसे ग्रन्थों में से मिल जाती है। पिछले ग्रन्थकारों ने यह साल मनगढन्त खड़ी करदी है, ऐसा कहने का मेरा आशय नहीं है, परन्तु वास्तविक बात का भ्रान्त अर्थ करने के कारण यह भूल उत्पन्न हुई है, ऐसा मैं समझता हूँ। अन्तिम नोट में (- द्रष्टव्य नीचे दी हुई टिप्पणी) दिखलाये हुए मेरे अनुमान को स्वीकार करके प्रो० ल्युमन लिखते हैं (जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी का जर्नल पु. ४३ पृ० ३४८) कि अन्यान्य सालों के (वही जर्नल पु० ३७, पृ० ५४० नोट.) समान हरिभद्र के स्वर्गगमन की साल ___ *जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी के जर्नल की ४० वी जिल्द में पृ. ९४ पर लेखक श्री जिनविजय जी ने लिखा है कि-हरिभद्रस रि और शीलाङ्काचार्य दोनों के गुरु जिनभद्र या जिनभट थे, इसलिये ये दोनों समकालीम थे। शीलाङ्क ने आचाराङ्गसूत्र के ऊपर ७९८, ई. स. ८७६ में टीका लिखी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
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