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________________ ( १४ ) वीर नि० ४७० अनन्तर विक्रम संवत् की शुरुआत, तदनन्तर ५८५; ४७०+५४५=१०५५) वर्ष में हरिभद्रसूरि का स्वर्गवास हुआ था। इन पिछले दोनों ग्रन्थकारों का कथन क्रमशः इस प्रकार है (१) 'श्रीवीरनिर्वाणात् सहस्रवर्षे पूर्वश्रुतव्यवच्छिन्नम् । श्रीहरिभद्रसूरयस्तदनु पञ्चपञ्चाशता वर्षे दिवं प्राप्ताः ।' -विचारामृतसंग्रह । (२) श्रीवीरात् पञ्चपञ्चाशदधिकसहस्रवर्षे विक्रमात् पञ्चाशत्यधिकपञ्चशतवर्षे याकिनीसूनुः श्रीहरिभद्रसूरिः स्वर्गभाक् । -तपागच्छगुर्वावली। मुनि सुन्दरसूरि ने जो तपागच्छ की पद्यबद्ध गुर्वावली (संवत् १४६६) बनाई है उसमें हरिभद्रसूरि को मानदेवसूरि (द्वितीय) का 'मित्र बतलाया है। इस मानदेव का समय पट्टावलियों की गणना और मान्यतानुसार विक्रम की ६ठीं शताब्दी समझा जाता है। अतः यह उल्लेख भी हरिभद्रसूरि के गाथोक्त समय का संवादी गिना जाता है । मुनि सुन्दरसूरि का उल्लेख इस प्रकार है-- अभूद् गुरुः श्रीहरिभद्रमित्रं श्रीमानदेवः पुनरेव सूरिः । यो मान्द्यतो विस्मतसरिमन्त्रं लेभेऽम्बिकाऽऽस्यात्तपसोज्जयन्ते ॥ -गुर्वावली (यशोविजय ग्रंo काशी) पृ. ४ १. धर्मसागरगणि ने अपनी पट्टावली में इसी पद्य का समानार्थक एक दूसरा पद्य उद्धृत किया है । यथा विद्यासमुद्रहरिभद्रमुनीन्द्रमित्रं सूरिर्बभूव पुनरेव हि मानदेवः। मान्द्यात् प्रयातमपि योऽनघसरिमन्त्र लेभेऽम्बिकामुख गिरा तपसोज्जयन्ते । यही पद्य पुनः पूर्णिमागच्छ की पट्टावली में भी मिलता है। - द्रष्टव्य पं. हरगोविन्ददास का हरिभद्रचरित पृ. ३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
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