SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८ ) सत्य हैं उसके बारे में हम अपना कुछ भी अभिप्राय यहां पर नहीं दे सकते)। इस ग्रन्थ के बाद राजशेखरसरि के (वि० सं० १४०५ में) बनाये हुए प्रबन्धकोष नामक ऐतिहासिक और किंवदन्ती स्वरूप प्रबन्धों के संग्रहात्मक ग्रन्थ में भी इनके विषय में वर्णन मिलता है। हरिभद्रसरि के जीवन के सम्बन्ध में कुछ विस्तार के साथ बातें इन्हीं दो पुस्तकों में लिखी हई मिलती हैं । संक्षेप में तो कुछ उल्लेख इन ग्रन्थों के पूर्व बने हए ग्रन्थों में भी कहीं-कहीं मिल जाते हैं। ऐसे ग्रन्थों में, काल-क्रम की दृष्टि से प्रथम ग्रन्थ मुनिचन्द्रसूरि रचित उपदेशपद ( जो हरिभद्र का ही बनाया हुआ एक प्रकरण ग्रन्थ है ) की टीका है। इस टीका के अन्त में बहुत ही संक्षेप में -परन्तु प्रभावकचरितकार ने अपने प्रबन्ध में जितना चरित वर्णित किया है उसका बहुत कुछ सार बतलाने वाला हरिभद्र के जीवन का विवरण है । दूसरा ग्रन्थ भद्रेश्वरसरि द्वारा रचित प्राकृत भाषामय 'कहावली' है । इसमें चौबीस तीर्थंकरों के चरित्रों के साथ अन्त में भद्रबाहु, वज्रस्वामी, सिद्धसेन आदि आचार्यों की कथायें भी लिखी हई हैं, जिनमें अन्त में हरिभद्र की जीवन कथा भी सम्मिलित है । इसी तरह थोड़ा विवरण गणधरसाद्धं शतकबृहत्टीका में भी उल्लिखित है । ____इन सब ग्रन्थों में लिखे हुए वर्णनों से निष्कर्ष निकलता है कि हरिभद्र पूर्वावस्था में एक बड़े विद्वान् और वैदिक ब्राह्मण थे। चित्रकूट ( मेवाड़ की इतिहास प्रसिद्ध वीरभूमि चित्तौड़गढ़ ) उनका निवास-स्थान था। याकिनी महत्तरा नामक एक विदुषी जैन आर्या ( श्रमणी= साध्वी ) के समागम से उनको जैनधर्म पर श्रद्धा हो गई थी और उसी साध्वी के उपदेशानुसार उन्होंने जैनशास्त्र प्रतिपादित संन्यासधर्म-श्रमणव्रत को स्वीकार कर लिया था। इस १. यह टीका वि. सं. ११७४ में समाप्त हुई थी। २. यह ग्रन्थ कब बना इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता । रचनाशैली और कर्ता के नाम से अनुमान होता है कि १२ वीं शताब्दी में इसका प्रण यन हुआ होगा । इस शताब्दी में भद्रेश्वर नाम के दो-तीन विद्वानों के होने के उल्लेख मिलते हैं। ३. इस वृत्ति की रचना-समाप्ति वि. स. १२९५ में हुई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy