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भूमिका
इन्द्रियों की मध्यस्थता के भेद से काव्य के दो भेद किये गये हैं दृश्य और श्रव्य | दृश्यकाव्य के अन्तर्गत नाटक आदि बारह प्रकार के रूपक' और १८ उपरूपकों की गणना की जाती है । श्रव्यकाव्य के तीन भेद किये गये हैं पद्य, गद्य और चम्पू । गत्यर्थक / पद् धातु से गति की प्रधानता सूचित करता है । अतः पद्य काव्य में ताल, लय या छन्द की व्यवस्था होती है । पुनः पद्यकाव्य के भी उपभेद किये गये हैं, जो इस प्रकार हैं
निष्पन्न 'पद्य' शब्द
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दृश्य काव्य
महाकाव्य
काव्य
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पद्य-काव्य /
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खण्डकाव्य
( गीति काव्य ) I
प्रबन्ध-काव्य
( सन्देश - काव्य )
[ मेघदूतम्, ऋतुसंहार आदि ]
गीतिकाव्य में जीवन का सम्पूर्ण वर्णन रहता है
श्रव्यकाव्य
गद्य-काव्य
मुक्तक-काव्य
१. नाट्यदर्पण - एक समीक्षात्मक अध्ययन ( धीरेन्द्र मिश्र ) । २. साहित्यदर्पण, ६/४-५ ।
psprak
[ अमरुशतक, भर्तृहरिशतक आदि । इतिवृत्त न होकर किसी एक अंश का
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चम्पू- काव्य
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