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________________ भूमिका यहाँ ध्यातव्य है कि जो लोग रस की पुष्टि के लिए प्रबन्धकाव्य को उत्तम साधन स्वीकार करते या समझते हैं, उन्हें आनन्दवर्धन की यह उक्ति नहीं भुलानी चाहिए - "मुक्तकेषु हि प्रबन्धेषु इव रसबन्धनाभिनिवे. शिनः कवयो दृश्यन्ते"। प्रवन्धकाव्य के संदेश-काव्य या दूत-काव्य की परम्परा में 'मेघदूत' और 'घटकर्पर-काव्य' ही पहिली कृतियां हैं। उभय काव्यों में किसकी रचना पहिले हुई, इस विषय में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वैतालभट्ट, घटकर्पर और कालिदास को विक्रमादित्य की विद्वत्सभा का भूषण माना गया है । इस नामाबली में घटकर्पर को पहिले और कालिदास को बाद में रखा गया है । छन्दरचना की दृष्टि से ही कदाचित् यह पूर्वापर का क्रम रख गया हो; और इसके अतिरिक्त कथंचित् इसमें भी संदेह है कि 'ज्योतिविदाभरण' की उक्त बात सर्वथा कल्पित हो। ___ 'घटकर्पर-काव्य' के अन्तिम श्लोक में कवि ने प्रतिज्ञा की है कि जो भी कवि इससे उत्तम काव्य की रचना कर देगा, उसके लिए वह कर्पर (टुकड़ा ) पर पानी भर कर ला देगा । कवि की इसी प्रतिज्ञा पर काव्य का ऐसा नामकरण हुआ और सम्भवतया इस नामकरण पर ही उसके निर्माता की भी 'घटकर्पर' नाम से प्रसिद्धि हुई। ___ नई-नई शताब्दियों में प्रेरणा तथा स्फूर्ति प्रदान करना काव्य की महत्ता का स्पष्ट सूचक होता है। उक्त दोनों कवियों के बाद महाकवि भवभूति ने अपने 'मालतीमाधव' में माधव के द्वारा मालती के समीप मेघ को दूत बनाकर भेजने की कल्पना का अनुसरण किया। इसके पश्चात् सन्देशकाव्यों की प्रणयन परम्परा में जैन कवियों का बड़ा योग एवं उत्साह रहा है। जनकवि 'जिनसेन' ( ८१४ ई० ) ने २३वें तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ के जीवनचरित पर चार सर्गों में एक 'पार्वाभ्युदय' काव्य की रचना की। आचाय जिनसेन का कार्य इस दृष्टि से नितान्त श्लाघ्य है, जिन्होंने मेघदूत के समस्त पद्यों के समग्र चरणों की पूर्ति की। इस काव्य में ३६४ पद्यों में 'मेघदूत' के लगभग १२० श्लोक सम्मिलित हैं। १. संस्कृत साहित्य का ( संक्षिप्त ) इतिहास, वाचस्पति गैरोला, पृ० ६०७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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