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________________ M: जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन आधारभूत सामग्री प्रस्तुत करते हैं । अतः व्यवस्थित और समग्न दृष्टि से पुराणों के अध्ययन-विवेचन द्वारा अध्येता कला के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों पक्षों की यथार्थपरक समीक्षा कर सकता है। साथ ही अन्य साक्ष्यों से उपलब्ध कलाविषयक सामग्री के तुलनात्मक विश्लेषण द्वारा एक विस्तृत परिप्रेक्ष्य में न केवल जैन वरन् अन्य धर्मों के साथ भी कला के स्तर पर होने वाले सम्पर्क सामंजस्य को रेखांकित कर सकता है। डॉ० (श्रीमती ) कुमुद गिरि की “जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन" शीर्षक प्रस्तुत पुस्तक इस दिशा में गम्भीर और सार्थक प्रयास है। जैनपुराणों में महापुराण निःसन्देह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और विस्तृत है जो आदिपुराण एवं उत्तरपुराण इन दो खण्डों में विभाजित है। आदिपुराण की रचना जिनसेन न लगभग नवीं शती ई० के पूर्वार्द्ध में और उत्तरपुराण की रचना उनके शिष्य गुणभद्र ने नवीं शती ई० के अन्त या १०वीं शतो ई० के प्रारम्भ में की थी। दोनों पुराणों को संयुक्त रूप से महापुराण कहा जाता है जिनमें चौबीस तीर्थंकरों, १२ चक्रवर्ती, ९ बलभद्र, ९ नारायण और ९ प्रतिनारायण सहित कुल ६३ शलाकापुरुषों (श्रेष्ठजनों) के जीवनचरित का विस्तारपूर्वक निरूपण हुआ है। साथ ही विभिन्न प्रसंगों में यक्षियों, विद्यादेवियों, देवताओं के चार वर्गों, लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा, यमुना, इन्द्र, कामदेव एवं लोकपरम्परा वाले देवी-देवताओं के नामोल्लेख तथा कभी-कभी महत्त्वपूर्ण लाक्षणिक विशेषताओं की भी चर्चा मिलती है। महापुराण में जैनधर्म एवं परम्परा के मौलिक तत्वों के प्रति रचनाकारों की पूरी आस्था और प्रतिबद्धता के साथ ही उनके उदार एवं व्यापक चिन्तन की दृष्टि भी देखी जा सकती है। यह बात वैदिक और जैन परम्परा के अन्तःसम्बन्धों एवं पारस्परिक समन्वय के रूप में अभिव्यक्त हुई है। ऋषभनाथ के स्तवन तथा अन्य तीर्थंकरों के विशेषणों के सन्दर्भ में अनेकशः शिव, विष्णु, ब्रह्मा, सूर्य, इन्द्र और यहाँ तक कि बौद्ध देवों (बुद्ध, सिद्धार्थ, स्वयंबुद्ध तथा अक्षोभ्य) के नामों का उल्लेख किया गया है। इनमें सर्वाधिक नाम शिव से सम्बन्धित हैं जिनमें यदा-कदा शिव के लक्षणपरक संकेत भी निहित हैं। इन नामों में शंकर, शिव, महेश्वर, महादेव, विश्वमूर्ति, मृत्युञ्जय, भूतनाथ, अष्टमूर्ति, हर, वामदेव, सद्योजात, अघोर, ईशान, त्रिनेत्र, त्रिपुरारि, त्रिलोचन, जितमन्मथ, कामारि और अर्द्धनारीश्वर मुख्य हैं । ये नाम न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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