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________________ - २८ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन १०६ कि जैन पुराणों में वृषभदेव को आदि ब्रह्मा, प्रजापति और विधाता भी कहा गया है । महापुराण में ब्राह्मण ग्रन्थों की भाँति चार वर्णों के पृथक-पृथक कार्य, उनके सामाजिक एवं धार्मिक अधिकार, चार आश्रमों और संस्कारों (तिरपन गर्भान्वय, अड़तालिस दीक्षान्वय एवं आठ कत्रन्वय क्रियाओं) का विस्तार से वर्णन है । १०७ जिनसेन कृत आदिपुराण में ही सर्वप्रथम गर्भादि सोलह संस्कारों का भी उल्लेख किया • गया है। संभवतः ब्राह्मण परम्परा के अनुकरण पर उन्होंने अपने मत के अनुयायियों के लिये इसे विकल्प रूप में रखा है । १०८ महापुराण के अनुसार भिन्न-भिन्न वर्णों को अपने-अपने वर्णानुसार निर्धारित आजीविका के अतिरिक्त अन्य आजीविका को ग्रहण करना निषेध था । १०% जिनसेन ने आदिपुराण में ब्राह्मत्व का आधार ' व्रत संस्कार' · को माना है । ११० इस प्रकार महापुराण की विषय सामग्री एवं रचनाकारों की बहुपक्षीय सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अध्ययन से ९वीं और १०वीं शती ई० के प्रारम्भ के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से महापुराण का महत्त्व स्वतः सिद्ध हो जाता है । महापुराण में एक ओर जैन धर्म एवं परम्परा के मूलभूत तत्त्वों की निष्ठापूर्वक चर्चा की गयी है और दूसरी ओर जिनसेन व गुणभद्र के व्यापक चिन्तन तथा तत्कालीन परिस्थितियों के कारण वैदिक और काफी सीमा तक ब्राह्मण परम्परा के साथ समन्वय स्थापित करने की भी चेष्टा की गयी है । इस समन्वयात्मक प्रवृत्ति तथा राष्ट्रकूट शासकों के साथ महापुराण की समकालिकता के कारण जैनधर्मं और कला दोनों ही दृष्टियों से महापुराण की सामग्री का विशेष महत्त्व निर्विवाद है । . द- टिप्पणी Jain Education International पाद-1 १. के ० ऋषभचन्द्र, 'जैन पुराण साहित्य', म० जै० वि० गो० जु० वा०, पृ० ७१-७२ । २. देवी प्रसाद मिश्र, जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन, इलाहाबाद १९८८, पृ० १३ - १७; एम० विन्टरनिट्ज़, ए हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिट्रेचर, खण्ड२ ( बुद्धिस्ट ऐण्ड जैन लिट्रेचर ), कलकत्ता १९३३, पृ० ४९६-९९ । ३. श्वेताम्बर ग्रन्थों में शलाकापुरुषों की बलदेव, वासुदेव व प्रतिवासुदेव कहा गया है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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