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________________ २५८: जेन महापुराण : कलापरक अध्ययन एवं महावीर के विभिन्न उपसर्गों से सम्बन्धित अंकन विस्तार से उत्कीर्ण हैं। दूसरी ओर दिगम्बर स्थलों पर तीर्थंकरों के जीवन दश्यों का विस्तृत अंकन नहीं हुआ है। एलोरा की तीर्थंकर मूर्तियों में केवल पाश्वनाथ के साथ शंबर द्वारा उपस्थित किये गए विभिन्न उपसर्गों का ही विस्तृत अकन मिलता है। महावीर के साथ पारम्परिक यक्ष-यक्षी मातंग व सद्धायिका के स्थान पर नेमिनाथ के यक्ष-यक्षी कुबेर ( या सर्वानुभूति ) और अम्बिका निरूपित हैं जो स्पष्टतः पश्चिम-भारत के श्वेताम्बर मूर्ति परम्परा का प्रभाव है जहाँ लगभग सभी तीर्थंकरों के साथ यक्ष-यक्षी के रूप में कुबेर और अम्बिका ही आमूर्तित हैं। . - उत्तरपुराण में नेमिनाथ के साथ सर्पफणों के छत्र वाले हलधर बलराम और चक्र, शंख तथा गदाधारी वासुदेव कृष्ण का उल्लेख हुआ है । तद्नुरूप मथुरा व देवगढ़ की दिगम्बर परम्परा की कुछ नेमिनाथ मूर्तियों में दोनों पावों में बलराम व कृष्ण की आकृतियाँ उकेरी हैं। एलोरा एवं नवीं-१०वीं शती ई० की दिगम्बर परम्परा की अन्यत्र की तीर्थंकर मूर्तियों में महापुराण के उल्लेख के अनुरूप सिंहासन, प्रभामण्डल, त्रिछत्र, चैत्य-वृक्ष (या अशोक वृक्ष), देवदुन्दुभि,सुरपुष्पवृष्टि, दिव्य ध्वनि, चामरधारी सेवक जैसे अष्ट-प्रातिहार्यों को दिखाया गया है । आदिपुराण में तीर्थंकर मूर्तियों में दिखाये जाने वाले अष्ट-प्रातिहार्यों का सर्वाधिक विस्तार में उल्लेख हुआ है।' इस सन्दर्भ में एलोरा की पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तियों में किसी भी प्रातिहार्य का न दिखाया जाना न केवल शिल्पी की सूझ वरन उत्तरपूराण के विवरणों के सर्वथा अनुरूप है। पार्श्वनाथ की ध्यानस्थ मूर्तियों में प्रातिहार्यों का अंकन किया गया है क्योकि ध्यानस्थ मूर्तियाँ उनके तीर्थंकर पद प्राप्त करने के उपरान्त की स्थिति को अभिव्यक्त करती हैं। दूसरी ओर एलोरा की कायोत्सर्ग मूर्तियों में पार्श्वनाथ को तपस्या में तरह-तरह के उपसर्गों का प्रसंग दिखाया गया है । शंबर के ये उपसर्ग स्पष्टतः कैवल्य प्राप्ति के पूर्व के पार्श्वनाथ के अंकन हैं। इसी कारण उपसर्ग से सम्बन्धित पार्श्वनाथ की मूर्तियों में अष्ट-प्रातिहार्यों को नहीं दिखाया गया है। इस सन्दर्भ में एक और उल्लेखनीय बात एलोरा की जैन गुफाओं में पार्श्वनाथ की शंबर के उपसर्गों को शिल्पांकित करने वाली कायोत्सर्ग मूर्तियों के एक नियत स्थान पर उत्कीर्णन से सम्बन्धित है। पार्श्वनाथ की सभी उपसर्ग मतियाँ कठिन तपश्चर्या में लीन बाहबली की मूर्ति के सामने उत्कीर्ण हैं । स्मरणीय है कि पार्श्व जहाँ शंबर के विभिन्न उपसर्गों को शांतभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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