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अन्य देवी-देवता : १७७
सरस्वती :
प्रारम्भिक जैन ग्रन्थों में सरस्वती का उल्लेख मेधा एवं बुद्धि के देवता या श्रुत देवता के रूप में प्राप्त होता है। आदिपुराण, हरिवंश - पुराण, महापुराण (पुष्पदन्तकृत ) एवं त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र में सरस्वती का उल्लेख पूर्व ग्रन्थों की भाँति श्री, हृ, धृति, कीर्ति, बुद्धि एवं लक्ष्मी जैसे हृद देवियों के रूप में आया है जिनका निवास विभिन्न पद्म सरोवरों में माना गया है । १५ सरस्वती का लाक्षणिक स्वरूप जैन ग्रन्थों में वीं शती ई० के बाद विवेचित हुआ है। जैन शिल्प में यक्षी अम्बिका एवं चक्रेश्वरी के बाद सरस्वती की ही सर्वाधिक स्वतन्त्र मूर्तियाँ बनीं।
ज्ञान और पवित्रता की देवी होने के कारण ही सरस्वती के साथ हंस वाहन और करों में पुस्तक, अक्षमाला, वरदमुद्रा, पद्म ओर जलपात्र दिखाये गये हैं । ल० १०वीं - ११वीं शती ई० में संगीत व अन्य ललित - कलाओं की देवी के रूप में इन्हें मान्यता मिली और तब उनके वाहन के रूप में मयूर और हाथों में वीणा का अंकन प्रारम्भ हुआ । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सरस्वती पूजन अधिक लोकप्रिय था । यही कारण है कि बादामी, अयहोल एवं एलोरा जैसे दिगम्बर जैन स्थलों पर सरस्वती की मूर्तियाँ उत्कीर्ण नहीं हुईं । पूर्व मध्यकाल में श्वेताम्बर सम्प्रदाय में शक्ति के रूप में भी सरस्वती की साधना की गयी जिसमें आगे चलकर तन्त्र का भी प्रवेश हुआ ।
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बाह्मण परम्परा में विद्या की देवी सरस्वती एवं जैन परम्परा की सरस्वती या बुद्धि देवी की लाक्षणिक विशेषताओं में अद्भुत समानता देखने को मिलती है । दोनों ही परम्पराओं की सरस्वती प्रतिमाओं में इनके करों में पुस्तक, वीणा, अक्षमाला, स्रुक, अंकुश तथा पाश जैसे आयुध दिखाये गये हैं । हंस या मयूरवाहना सरस्वती की ९वीं से १२वीं शती ई० के मध्य की अनेक मूर्तियाँ देवगढ़, खजुराहो, ओसियाँ, कुम्भारिया, देलवाड़ा, तारंगा, जिननाथपुर, हुम्मच, हलेबिड तथा पल्लू ( बीकानेर, राजस्थान) जैसे स्थलों से मिली हैं (चित्र २६) ।
हृद देवियाँ :
जैन परम्परा में श्री, हु, धृति, बुद्धि, कीर्ति एवं लक्ष्मी जैसी देवियों के उल्लेख हैं जिनका निवास ६ प्रमुख पर्वतों पर स्थित – पद्म, महापद्म, तिगिन्छ, केसरी, महापुण्डरीक तथा पुण्डरीक नामक हृदों में है । दिगम्बर परम्परा में इनका उल्लेख शान्तिकर्म के सन्दर्भ में तथा हृद
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